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२३२ भी सेठिया बेन प्रन्थमाला को धर्म से बाहर समझो। अतएव प्रमाद का त्याग कर धर्माचरण में उद्यम करो। (आचारांग पॉचवॉ श्र० दूसरा उ० सूत्र १५१)
तं तह दुल्लहलंभ, विज्जुलया चंचलं माणुस।
लधुण जोपमायइसो कापुरिसोन सप्पुरिसो।। - भावार्थ-अति दुर्लभ एवं बिजली के समान चंचल इस मनुष्यभव को पाकर जो पुरुष प्रमाद करता है वह कापुरुष ( कायर) है, सत्पुरुष नहीं।
(आवश्यक मलयगिरि पहला अ०) जे पमत्ते गुणट्ठिए, से हुदण्डे पवुच्चइ । तं परिणाय मेहावी इयाणिणोजमहं पुज्वमकासी पमाएवं ॥७॥ ' . भावार्थ-जो मद्यादि प्रमाद का पाचरण करता है,शब्दादि गुणों को चाहता है वह हिंसक कहा जाता है । यह जानकर वुद्धिमान् साधु यह निश्चय करे कि प्रमाद वश मैंने जो पहले कियाथा वह अब मैं नहीं करूंगा। (आचारांग पहला अ० चौथा उ० सूत्र ३५-३६)
अंतरं च खल इमं संपेहाए, धीरो मुहुत्तमपि णो पमायए। वओ अचेइ जोवणं च ॥ ८॥
भावार्थ-मानव भव, आर्यकुल श्रादि की प्राप्ति-यही धर्म साधन के लिये उपयुक्त अवसर है। यह जान कर धीर पुरुष मुहूर्त मात्र भी प्रमाद न करे। यह वय (अवस्था) और यौवन बीते जारहे हैं।
(आचाराग दूसरा अध्ययन पहला उ० सत्र ६६) मुत्ता अमुणी, मुणिणो सया जागरंति ॥ ६ ॥ . भावार्थ-जो लोग सोये हुए हैं वे अमुनि हैं और जो मुनि हैं पे सदा जागते रहते हैं। (आचारांग तीसरा अ० पहला उ० सूत्र १०६)