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श्री सेठिया जैन अन्यमाला
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वि न डझंति, उज्जुगा मणूसा सचेण य तत्त तेल्लतउलोहसीसकाई छिवंति धरैति न य डझंति मणूसा, पव्वयकडकाहिं मुचंते न य मरंति सच्चेण य परिग्गहिया असिपंजरगया समराओ वि णिइंति अणहा य, सञ्चवादी वह बंधभियोगवेरघोरेहिं पमुचंति य अभित्तमज्झाहिं निइंति अणहा य सच्चवादी, सदेवगाणि य देवयाओ करेंति सच्चवयणे रत्ताणं ॥१॥
भावार्थ-महासमुद्र के मध्य दिशा भूले हुए जहाज सत्य के प्रभाव से स्थिर रहते हैं किन्तु इयते नहीं हैं । सत्य के प्रभाव से जल का उपद्रव होने पर मनुष्य न बहते हैं, न मरते ही हैं किन्तु पानी का थाह पा लेते हैं । सत्य ही का यह प्रभाव है कि मनुष्य अग्नि में जलते नहीं हैं । सरल सत्यवादी मनुष्य तपा हुआ तैल कथीर,लोहा और सीसा छू लेते हैं, हथेली पर रख लेते हैं किन्तु जलते नहीं हैं। सत्य को अपनाने वाले पहाड़ से गिराये जाने पर भी मरते नहीं हैं। सत्यधारी महापुरुष युद्ध में खड्ग हाथ में लिये हुए विरोधियों के बीच घिर कर भी अक्षत निकल आते हैं। घोर वध, बन्ध, अभियोग और शत्रुता से भी वे सत्य के प्रभाव से मुक्ति पा लेते हैं और शत्रुओं के चंगुल से बच कर निकल आते हैं । सत्य से आकृष्ट होकर देवताभी सत्यवादियों के समीप बने रहते हैं। (प्रश्नव्याकण दूसरा संवर द्वार सूत्र २४ )
मूसावाओ उ लोगम्मि, सव्वसाहूहिं गरहिओ । अविस्सासो य भूयाण, तम्हा मोसं विवजए ॥१०॥
भावार्थ-संसार में साधु पुरुषों ने मृपा-असत्य वचन की निन्दा की है । असत्यवादी का कोई विश्वास नहीं करता। इसलिये असत्य से परहेज करना चाहिये।
(दशकालिक छठा अध्ययन गाथा १२)