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श्री सेठियां जैन ग्रन्थमाला निराश होकर शोक करने लगे। दौड़ते दौड़ते वे थक गये थे। भूख प्यास से वे व्याकुल थे । धनदत्त ने अन्य कोई उपाय न' देखकर, उस मृत कलेवर से अपनी भूख प्यास बुझाने के लिये अपने पुत्रों को कहा। पुत्रों ने उसकी बात को स्वीकार किया और वैसा ही करके सुखपूर्वक राजगृह नगर में पहुंच गये ।
उपरोक्त रीति से धनदत्त ने अपने और अपने पुत्रों के प्राण बचाये, यह उसकी पारिणामिकी बुद्धि थी।
यह कथा ज्ञातासूत्र के अठारहवें अध्ययन में पाई है, जो इसी ग्रन्थ के पाँचवें भाग के बोलनं०६०० में विस्तार पूर्वक दी गई है।
(८) श्रावक भार्या-एक समय एक श्रावक ने दूसरे श्रावक की रूपवती भार्या को देखा । उसे देख कर वह उस पर मोहित हो गया । लज्जा के कारण उसने अपनी इच्छा किसी के सामने प्रकट नहीं की। इच्छा के बहुत प्रबल होने के कारण वह दिन प्रतिदिन दुर्बल होने लगा। जब उसकी स्त्री ने बहुत आग्रह पूर्वक दुर्बलता का कारण पूछा तो श्रावक ने सची सच्ची बात कह दी।
श्रावक की बात सुनकर उसकी स्त्री ने विचार किया कि ये श्रावक हैं । ग्वादार संतोष का व्रत ले रखा है। फिर भी मोह कम के उदय से इन्हें ऐसे कुविचार उत्पन्न हुए हैं । यदि इन कुविचारों में इनकी मृत्यु हो गई तो ये दुर्गति में चले जायेगे । इसलिए कोई ऐसा उपाय करना चाहिए जिससे इनके ये कुविचार भी हट जायं और इनका व्रत भी खण्डित न हो । कुछ सोचकर उसने कहा-स्वामिन् !
आप चिन्ता न करिये। इसमें कठिनता की क्या बात है ? वह मेरी सखी है। मेरे कहने से वह आज ही आ जायगी। ऐसा कहकर वह अपनी सखी के पास गई और वे ही कपड़ मांग लाई जिन्हें पहने हुए उसे श्रावक ने देखा था। रात्रि के समय शवक की स्त्री