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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाली
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प्राचीन समय में हस्तिनापुर नाम का नगर था । उसमें सुमुख नाम का एक गाथापति रहता था । एक समय धर्मघोष नामक स्थविर अपने पाँच सौ शिष्यों सहित वहाँ पधारे। उनके शिष्य सुदत्त नामक अनगार मास मास खमण ( एक एक महीने का तप ) किया करते थे । मास खमण के पार के दिन वे तीसरे पहर भिक्षा के लिए निकले। नगर में जाकर सुमुख गाथापति के घर में प्रवेश किया। मुनिराज को पधारते देख कर समुख अपने आसन से खड़ा हुआ । सात आठ कदम सामने जाकर मुनिराज को यथाविधि वन्दना की । रसोई घर में जाकर शुद्ध आहार पानी का दान दिया । द्रव्य, दाता और प्रतिग्रह तीनों शुद्ध थे अर्थात् आहार जो दिया गया था वह द्रव्य भी शुद्ध था । फल की वाञ्छा रहित होने से दाता भी शुद्ध था और दान लेने वाले भी शुद्ध संयम के पालन करने वाले भावितात्मा अनगार थे। तीनों की शुद्धता के कारण सुमुख गाथापति ने संसार परत किया और मनुष्य आयुका बन्ध किया । आकाश में देवदुन्दुभि बजी और 'अहोदा अहोदारां' की ध्वनि के साथ देवताओं ने बारह करोड़ सोनैयों की वर्षा की तथा पुष्प वस्त्र आदि की वृष्टि की। नगर में इसकी खबर तुरन्त फैल गई। लोग सुमुख गाथापति की प्रसंशा करने लगे । वहाँ की आयु पूरी करके सुमुख गाथापति का औत्र हस्तिशीर्ष नगर में दीनशत्रु राजा के घर धारिणी रानी की कुक्षि से पुत्ररूप से उत्पन्न हुआ है ।
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गौतम स्वामी ने फिर प्रश्न किया कि हे भगवन् ! क्या वह सुबाहु कुमार आपके पास दीक्षा ग्रहण करेगा ? भगवान् ने उत्तर दिया- हाँ गौतम! सुबाहु कुमार मेरे पास दीक्षा ग्रहण करेगा। पश्चात् भगवान् अन्यत्र विहार कर गए ।
एक समय सुबाहु कुमार तेले का तप कर पौषध शाला में बैठा
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