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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
कर्म करके आनन्दित होता था । अपने यहाँ बड़े बड़े घड़े रखवा रखे थे जिन में गरम किया हुआ सीसा, ताम्बा, खार, तेल, पानी भरा हुआ था। कितनेक घड़ों में हाथी, घोड़े, गदहे आदि का मूत्र भरा हुआ था । इसी प्रकार खड्ग, छुरी आदि बहुत से शस्त्र इकट्ठे कर रखे थे । वह किसी चोर को गरम किया हुआ सीसा, ताम्बा, मूत्र आदि पिलाता था। किसी के शरीर को शस्त्र से फड़वा डालता था और किसी के श्रङ्गोपाङ्ग छेदन करवा डालता था । इस प्रकार वह दुर्योधन महान् पाप कर्मों का उपार्जन कर छठी नरक मैं उत्पन्न हुआ। वहाँ से निकलकर मथुरा नगरी के राजा श्रीदाम की बन्धुश्री रानी की कुक्षि से पुत्ररूप से उत्पन्न हुआ । उसका नाम नन्दीसेन रक्खा गया । जब वह यौवन वय को प्राप्त हुआ तो
राज्य में मूच्छित होकर राजा को मार कर स्वयं राज्य लक्ष्मी को प्राप्त करने की इच्छा करने लगा । राजा की हजामत बनाने वाले उस चित्र नाई को बुला कर कहने लगा कि हजामत बनाते सयम गले में उस्तरा लगा कर तुम गजा को मार डालना । मैं तुम्हें अपना आधा राज्य दूँगा । पहले तो उसने राजकुमार की बात स्वीकार करली किन्तु फिर विचार किया कि यदि इस बात का पता राजा को लग जायगा तो न जाने वह मुझे किस प्रकार बुरी तरह से मरचा डालेगा । ऐसा सोच कर उसने सारा वृत्तान्त राजा से निवेदन कर दिया। इसे सुन कर राजा अतिकुपित हुआ । राजा ने नन्दीसेन कुमार को पकड़वा लिया । वह उसकी बुरी दशा करवा रहा है । नन्दीसेन कुमार अपने पूर्वकृत कर्मों का फल भोग रहा है। यहाँ से मर कर पहली नरक में उत्पन्न होगा । मृगापुत्र की तरह भव भ्रमण करेगा | फिर हस्तिनापुर में मच्छ होगा । मच्छीमार के हाथ से मारा जाकर उसी नगर में एक सेठ के यहाँ जन्म लेगा । दीक्षा लेकर प्रथम देवलोक में उत्पन्न होगा। वहाँ से चब कर महा