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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, छठा भाग
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में उत्पन्न होगा। वहाँ उसकी उत्कृष्ट तीन सागरोपम की स्थिति होगी । वहाँ से निकल कर पक्षी रूप से उत्पन्न होगा । वहाँ से तीसरी नरक में सात सागरोपम की स्थिति वाला नैरमिक होगा । वहाँ से निकल कर सिह होगा फिर चौथी नरक में नैरयिक होगा । वहाँ से निकल कर सर्प होगा । वहाँ से आयु पूरी करके पाँचवीं नरक में नैरयिक होगा । उस नरक से निकल कर स्त्री रूप से उत्पन्न होगा। वहाँ की आयु पूरी करके छठी नरक में नैरयिक होगा। वहाँ से निकल कर मनुष्य होगा। फिर सातवीं नरक में उत्पन्न होगा । सातवीं नरक से निकल कर जलचर तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय होगा । मच्छ, कच्छ, ग्रह, मकर सुँसुमार आदि जलचर जीवों की साढ़े बारह लाख कुलकोड़ी में उत्पन्न होगा । एक एक योनि में लाखों बार जन्म मरण करेगा । फिर चतुष्पदों में जन्म लेगा । फिर उरपरिसर्पों में, भुजपरिमर्षो में, खेचरों में जन्म लेगा । फिर चतु रेन्द्रिय, तेइन्द्रिय और बेइन्द्रिय जीवों में जन्म लेगा । फिर वनस्पतिकाय में कड़वे और कांटे वाले वृक्षों में जन्म लेगा । फिर वायुकाय, तेउ. काय, काय और पृथ्वीकाय में लाखों बार जन्म मरण करेगा । फिर सुप्रतिष्ठ नगर में सांड (बैल) होगा । यौवन अवस्था को प्राप्त होकर वह ति बलशाली होगा । एक समय वर्षा ऋतु में जब वह गंगा नदी के किनारे की मिट्टी को अपने सींगों से खोदेगा तब वह तट टूट कर उन पर गिर पड़ेगा जिससे उसकी उसी समय मृत्यु हो जायगी । वहाँ से मृत्यु प्राप्त कर सुप्रतिष्ठ नगर में एक सेड के यहाँ पुत्र रूप से उत्पन्न होगा । वाल्यवस्था से मुक्त होने पर वह धर्म श्रवण कर दीक्षा लेगा । बहुत वर्षों तक दीक्षा पर्याय का पाल कर यथासमय काल करके पहले देवलोक में उत्पन्न होगा। वहाँ से चत्र कर वह महा वदेह क्षेत्र में उत्तम कुन में जन्म लेगा । होता लेकर सकल कर्मों का क्षय कर मोक्ष जायगा ।