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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, छठा भाग
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(१६) प्राभूत समास श्रुत-एक से अधिक प्राभूतों के ज्ञान को प्राभूत समास श्रुत कहते हैं।
(१७) वस्तु श्रुत-कई प्राभूतों का एक वस्तु नामक अधिकार होता है । एक वस्तु का ज्ञान वस्तु श्रुत है ।
(१८) वस्तु समास श्रुत-अनेक वस्तुओं के ज्ञान को वस्तु समास श्रुत कहते हैं।
(१६) पूर्व श्रुत-अनेक वस्तुओं का एक पूर्व होता है। पूर्व के ज्ञान को पूर्व श्रुत कहते हैं ।
(२०) पूर्व समास श्रुत-अनेक पूर्वो के ज्ञान को पूर्व समास श्रुत कहते हैं।
(कर्मप्रन्थ १ गथा ) ६०२-तीर्थङ्कर नामकर्म बाँधने के बीस बोल
अरिहंत सिद्ध पवयण, गुरु थेर बहुस्सुए तबस्सीसु । वच्छल्लया एएसि, अभिक्ख णाणोवोगे य॥ दसण विणए श्रावस्सए य, सीलबए णिरइभार । खण लव तव चियाए, वेयावच्चे समाही य॥ अप्पुवणाणगहणे, सुयभत्ती पत्रयणे पभावणया । एएहि कारणेहिं, तित्थयरत्तं लहइ जीवो ॥
(१) घातो कर्मों का नाश किये हुए, इन्द्रादि द्वारा वन्दनीय, अनन्त ज्ञान दर्शन सम्पन्न अरिहन्त भगवान् के गुणों की स्तुति एवं विनय भक्ति करने से जीव के तीर्थक्कर नामकर्म का बंध होता है।
(२) सकल कमों के नष्ट हो जाने से कृतकृत्य हुए, परम सुखी, ज्ञान दर्शन में लीन, लोकाग्र स्थित, सिद्ध शिला के ऊपर विराजमान सिद्ध भगवान् की विनय भक्ति एवं गुणग्राम करने से जीव तीर्थंकर नामकर्म बॉवता है।
(३) बारह अंगोंका ज्ञान प्रवचन कहलाता है एवं उपवार