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श्री साठया जैन ग्रन्थमाला
कहलाता है । लब्धिपुलाक की यह विशिष्ट शक्ति ही पुलाक लब्धिहै।
ये अट्ठाईस लब्धियां गिनाई गई हैं। इस प्रकार की और भी अनेक लब्धियाँ हैं-जैसे शरीर को अति सूक्ष्म बना लेना अणुत्व लब्धि है । मेरु पर्वत से भी बड़ा शरीर बना लेना महत्त्व लब्धि है। शरीर को वायु से भी हल्का बना लेना लघुत्व लब्धि है। शरीर को वज्र से भी भारी बना लेना गुरुत्व लब्धि है। भूमि पर बैठे हुए ही अङ्गुली से मेरु पर्वत के शिखर को छू लेने की शक्ति प्राप्ति लब्धि है। जल पर स्थल की तरह चलना तथा स्थल में जलाशय की भाँति उन्मज्जन निमज्जन (ऊपर आना नीचे जाना) की क्रियाएं करना प्राकाम्य लब्धि है । तीर्थङ्कर अथवा इन्द्र की ऋद्धि की विक्रिया करना ईशित्व लब्धि है । सब जीवों को वश में करना वशित्व लब्धि है । पर्वतों के बीच से बिना रुकावट निकल जाना अप्रतिघातित्व लब्धि है। अपने शरीर को अदृश्य बना लेना अन्तर्धान लब्धि है। एक साथ अनेक प्रकार के रूप बना लेना कामरूपित्व लब्धि है।
इन लब्धियों में से भव्य अभव्य स्त्री पुरुषों के कितनी और कौन सी लब्धियाँ होती हैं ? यह बताते हुए ग्रन्थकार कहते हैंभवसिद्धिय पुरिमाणं एयाओ हुंति भणियलद्धीओ। भवसिद्धिय महिलाण वि जत्तिय जायंति तं वोच्छं ॥१५०५॥ भरहंत चक्कि केसब बल संभिएणे य चरणे पुवा। गणहर पुलाय आहारगं च ण हु भविय महिलाणं ॥ १५०६॥ अभवियपुरिसाणं पुण दस पुचिल्लाउ केव लत्तं च । उज्जुमई विउलमई तेरस एयाउ ण हु हुंति ॥ १५०७ ॥ अभाविय महिलाणं वि एयानो हुँति मणिय लद्धीओ।
मह खीरासव लद्धी वि नेय सेसा उ अविरुद्धा ॥ १५०८ ॥ ' अर्थ-भव्य पुरुषों में अट्ठाईस ही लब्धियाँ पाई जाती हैं ।भव्य