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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
भावार्थ सिद्ध (कृतार्थ), बुद्ध, संसार के पार पहुंचे हुए, लोकाग्र स्थित, परम्परागत सभी सिद्ध भगवान् को सदा नमस्कार हो ॥ १ ॥ जो देवों का भी देव अर्थात् देवाधिदेव है, जिसे देवता अंजिल बांध कर प्रणाम करते हैं, देवेन्द्र पूजित उस भगवान् महावीर स्वामी को मैं नतमस्तक होकर बन्दना करता हूँ ||२॥ जिनवरों में वृषभ रूप भगवान् वर्धमान स्वामी को भावपूर्वक किया गया एक भी नमस्कार संसार - सागर से स्त्री पुरुष को तरा देता है ||३||
गिरनार पर्वत पर जिसके दीक्षा कल्याणक, ज्ञान कल्याणक एवं निर्वाण कल्याणक सम्पन्न हुए हैं, धर्म चक्रवर्ती उस अरिष्टनेमि प्रभु को मैं प्रणाम करता हूँ || ४॥
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इन्द्र नरेन्द्रादि द्वारा वन्दित, परमार्थतः कृतकृत्य हुए एवं सिद्ध गति को प्राप्त चार, आठ, दस और दो - यानी चौबीसों जिनेश्वर देव के सिद्धि प्रदान करें ||५||
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