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श्री जन सिद्धान्त वल संग्रह, छठा भाग
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कह दी और अपनी गलती के लिये क्षमा माँगी। निधान का आधा हिस्सा भी उसने उसे दे दिया। इस पर इसने भी उसके दोनों पुत्रों को उसे सौंप दिया । अपने पुत्रों को लेकर मायावी मित्र अपने घर चला आया। यह मित्र की श्रौत्पत्तिकी बुद्धि थी।
(२४, शिक्षा-एक पुरुप धनुविद्या में बहा दक्ष था। घूमते हुए वह एक गाँव में पहुंचा और वहाँ सेठों के लड़कों को धनुविद्या सिखाने लगा। लड़कों ने उसे बहुत धन दिया। जब यह बात सेठों को मालूम हुई तो उन्होंने सोचा कि इसने लड़कों से बहुत धन ले लिया है । इसलिये जब यह यहाँ से अपने गाँव को रवाना होगा तो इसे मार कर सारा धन वापिस ले लेंगे। -
किसी प्रकार इन विचारों का पना कलाचार्य को लग गया। उसने दूसरे गाँव में रहने वाले अपने सम्बन्धियों को खबर दी कि अमुक रात को मैं गोचर के पिएड नदी में फेंकू गा, आप उन्हें ले लेना । इसके पश्चात् कलाचार्य ने गोबर के कुछ रिएडों में द्रव्य मिला कर उन्हें धूप में मुखा दिया । कुछ दिनों बाद उसने लड़कों से कहा-अमुक तिथि पर्व को रात्रि के समय हम लोग नदी में स्नान करते हैं और मन्त्रोचारणपूर्वक गोवर के पिएडों को नदी में फेंकते हैं ऐसी हमारी कुलविधे है। लड़कों ने कहा-ठीक है। हम भी योग्य सेवा करने के लिये तैयार हैं। ___ अाखिर वह पर्व भी आ पहुँचा। रात्रि के समय कलाचार्य लड़कों के सहयोग से गोबर के उन पिण्डों को नदी के किनारे ले आया। कलाचार्य ने स्नान करके मन्त्रोच्चारण पूर्वक उन गोबर के पिण्डों को नदी में फेंक दिया । पूर्व संकेतानुसार कलाचार्य के सम्बन्धी जनों ने नदी में से उन गोवर के पिण्डों को ले लिया और अपने घर ले गये । कलाचार्य ने कुछ दिनों बाद विद्यार्थियों को विद्याध्ययन समाप्त