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भी जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, छठा भाग २७३ में वह सत्यवादिता और ईमानदारी के लिये प्रसिद्ध था।लोग कहते थे कि वह किसी की धरोहर नहीं दबाता। बहुत समय से रखी हुई धरोहर को भी वह ज्यों की त्यों लौटा देता है । इसी विश्वास पर एक गरीब आदमी ने अपनी धरोहर उस पुरोहित के पास रखी और वह परदेश चला गया। बहुत समय के बाद वह परदेश से लौट कर पाया और पुरोहित के पास जाकर उसने अपनी धरोहर मांगी। पुरोहित बिल्कुल अनजान सा बनकर कहने लगातुम कौन हो ? मैं तुम्हें नहीं जानता। तुमने मेरे पास धरोहर कर रखी थी ? पुरोहित का उत्तर सुन कर वह बड़ा निराश हुआ । धरोहर ही उसका सर्वस्व था। उसके चले जाने से वह शून्यचित्त होकर इधर उधर भटकने लगा। ___ एक दिन उसने प्रधान मन्त्री को जाते देखा । वह उसके पास पहुंचा और कहने लगा-पुरोहितजी ! एक हजार मोहरों की मेरी धरोहर मुझे वापिस कर दीजिये । उसके ये वचन सुन कर मन्त्री सारी बात समझ गया । उसे उस पुरुष पर बड़ी दया आई । उस ने इस विषय में राजा से निवेदन किश और उस गरीब को भी हाजिर किया । राजा ने पुरोहित को बुला कर कहा- इस पुरुष की धरोहर तुम वापिस क्यों नहीं लौटाते ? पुरोहित ने कहाराजन् ! मैंने इसकी धरोहर ही नहीं रखी। इस पर राजा चुप रह गया । पुरोहित के वापिस लौट जाने पर राजा ने उस आदमी से पूछा-बतलाओ, सच बात क्या है ? तुमने पुरोहित के यहाँ किस समय और किस के सामने धरोहर रखी थी ? इस पर उस आदमी ने स्थान, समय और उपस्थित व्यक्तियों के नाम बता दिये। ___ दूसरे दिन राजा ने पुगेहित के साथ खेलना शुरू किया। खेलते खेलते उन्होंने आपस में अपने नाम की अंगूठियां बदल ली। इसके पश्चात् अपने एक नौकर को बुला कर राजा ने उसे