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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
और अभयकुमार को साथ लेकर बड़ी धूमधाम के साथ राजा अपने महलों में लौट आया। अभयकुमार की विलक्षण बुद्धि को देख कर राजा ने उसे प्रधान मन्त्री के पद पर नियुक्त कर दिया। वह न्याय नीतिपूर्वक राज्य कार्य चलाने लगा।
बाहर खड़े रह कर ही कुए से अंगूठी को निकाल लेना अभयकुमार की औत्पत्तिकी बुद्धि थी।।
(५) पट (वस्त्र)-दो आदमी किसी तालाब पर जाकर एक साथ स्नान करने लगे। उन्होंने अपने कपड़े उतार कर किनारे पर रख दिये । एक के पास ओढ़ने के लिये ऊनी कम्बल था
और दूसरे के पास ओहने के लिये सूती कपड़ा था। सूती कपड़े वाला आदमी जल्दी स्नान करके आहर निकला और कम्बल लेकर रवाना हुआ। यह देख कर कम्मल का स्वामी शीघता के साथ पानी से बाहर निकला और पुकार कर कहने लगा-भाई ! यह कम्बल तुम्हारा नहीं किन्तु मेरा है। अतः मुझे दे दो। पर वह देने को राजी न हुआ। आखिर वे अपना न्याय कराने के लिये राज दरबार में पहुंचे। किसी का कोई साक्षी न होने से निर्णय होना कठिन समझ कर न्यायाधीश ने अपने बुद्धिवल से काम लिया । उसने दोनों के सिर के बालों में कंघी करवाई। इस पर कम्बल, के वास्तविक स्वामी के मस्तक से ऊन के तन्तु निकले। उसी समय न्यायाधीश ने उसे कम्बल दिलवा दी और दूसरे पुरुष को उचित दण्ड दिया । कंघी करया कर उन के कम्बल के असली स्वामी का पता लगाने में न्यायाधीश की औत्पत्तिको बुद्धि थी। . (६) शरट (गिरगिट)-एक समय एक सेठ शौचानिवृत्ति के लिये जंगल में गया। असावधानी से वह एक बिल पर बैठ गया। सहसा एक शरट गिरगिट) दौड़ता हुआ आया। बिल में प्रवेश करते हुए उस की पूँछ का स्पर्श उस सेठ के गुदाभाग से हो गया। सेठ के मन