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श्री जैन सिद्धान्त वोल संग्रह, छठा भाग
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हैं । इसलिये मुझे भी किसी धूर्त की ही शरण लेनी चाहिए। ऐसा सोच कर ग्रामीण ने उस धूर्त नागरिक से कुछ समय का अवकाश मांगा। शहर में घूम कर उसने किसी धूर्त नागरिक से मित्रता कर ली और सभी घटना सुना कर उचित सम्मति मांगी। उसने ग्रामीण को धूर्त से छुटकारा पाने का उपाय बता दिया । बाजार में आकर ग्रामीण ने हलवाई की दुकान से एक लड्डु खरीदा और अपने प्रतिपक्षी नागरिक तथा साक्षियों को साथ लेकर वह दरवाजे के पास पाया । लड्डु को बाहर रख कर वह दरवाजे के भीतर खड़ा हो गया और लड्डू को सम्बोधन कर कहने लगा-'यो लड्डू ! अन्दर चले आयो, चले आयो ।' ग्रामीण के बार बार कहने पर भी लड्डू अपनी जगह से तिल भर भी नहीं हटा । तत्र ग्रामीण ने उपस्थित साक्षियों से कहा-मैंने आप लोगों के सामने यही शतं की थी कि मैं ऐसा लड्डू दूंगा जो दरबाजे में न आये । यह लड्ड भी दरवाजे में नहीं आता । यदि श्राप लोगों को विश्वास न हो तो आप भी बुला कर देख सकते हैं। यह लड्डु देकर अब मैं अपनी शर्त से मुक्त हो गया हूँ । साक्षियों ने तथा उपस्थित अन्य सभी लोगों ने ग्रामीण की बात स्वीकार की। यह देख धृत नागरिक बहुत लज्जित हुआ और चुपचाप अपने घर चला गया। धृतं से पीछा छूट जाने से प्रसन्न होता हुआग्रामीण अपने गांव को लौट गया। शर्त लगाने वाले तथा ग्रामीण को सम्मति देने वाले धृत नागरिक की यह औत्पत्तिकी बुद्धि थी। ___ (३) वृक्ष-कई पथिक यात्रा कर रहे थे। रास्ते में फलों से लदे हुए श्राम के वृक्ष को देख कर वे ग्राम लेने के लिये ठहर गये । पेड़ पर बहुत से बन्दर बैठे हुए थे। वे पथिकों को आम 'लेने में रुकावट डालने लगे । इस पर पथिक आम लेने का उपाय सोचने लगे। आखिर उन्होंने बुद्धिबल से वस्तुस्थिति का विचार कर बन्दरों