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शुद्धि-पत्र पुस्तक के छपते समय प्रेसमैन की असावधानी से भर काना मात्रा अनुस्वार आदि की कई जगह नहीं उठने की गलतियां रह गई हैं। वह शुद्धि पत्र में नहीं निकल मकी है। इसलिये पाठक गण क्षमा करें। श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, छठा भाग।
अशुद्धि शुद्धि
पूर्वक वर्तिनी प्रवर्तिनी विलेखित प्रतिलेखित टीकनुसार टीकानुसार उप नन उपहनन ।
पंक्ति
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प्राणी
मनुष्ये र
मनुष्येतर
वार्थवश कुक्षशल
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प्रजा स्वार्थवश कुक्षिशल पुरिमताल
पुरमताल
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मत मत
मत श्रादि
परित्त
जायगा - क्लेश रहित परिणाम
चाले अकर कहलाते हैं। मर्मती समेति
संमवासं सवन सेवन हुऐ
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