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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, छठा भाग २४७ डालो । यथास्थान चारों कोनों पर खम्भे लगा कर बीच की मिट्टी को भी खोद डालो। फिर चारो तरफ दीवार बना दो, मण्डप तय्यार हो जायगा।
रोहक का बताया हुमा उपाय सब लोगों को ठीक अँचा। उनकी चिन्ता दूर हो गई । सब लोग भोजन करने के लिये अपने अपने घर गये । भोजन करने के पश्चात् उन्होंने मण्डप बनाना प्रारम्भ किया। कुछ ही दिनों में सुन्दर मण्डप बन कर तय्यार हो गया। इसके पश्चात उन्होंने राजा की सेना में निवेदन किया कि स्वामिन् ! आपकी आज्ञानुसार मण्डप बन कर तय्यार है। उस पर शिला की छत लगा दी है। राजा ने पूछा-कैसे ? तब उन्होंने मण्डप बनाने की सारी हकीकत कह सुनाई। राजा ने पूछा यह किसकी बुद्धि है ? गॉव के लोगो ने कहा-देव ! यह भरत के पुत्र रोहक की बुद्धि है। उसी ने यह सारा उपाय बताया था। लोगों की बात सुन कर राजा को बड़ी प्रसन्नता हुई। रोहक की बुद्धि का यह दूसरा उदाहरण हुआ।
(३) मेंढा-कुछ समय पश्चात् रोहक की बुद्धि की परीक्षा के लिए राजा ने एक मेंढा भेजा और गांव वालों को आदेश दिया कि पन्द्रह दिन के बाद हम इस मेंढे को वापस मंगायेंगे। आज इसका जितना वजन है उतना ही पन्द्रह दिन के बाद रहना चाहिए । मेंढा वजन में न घटना चाहिए, न बढ़ना ही चाहिए ।
राजा के उपरोक्त आदेश को सुन कर गांव वाले लोग पुनः चिन्तित हुए। वे विचारने लगे-यह कैसे होगा ? यदि मेंढे को खाने के लिए दिया जायगा तो वह वजन में बढ़ेगा और यदि खाने को न दिया जायगा तो वजन में अवश्य घट जायगा। इस प्रकार राजाज्ञा को पूरा करने का उन्हें कोई उपाय न सूझा, तब रोहक को बुला कर कहने लगे-वत्स! तुमने पहले भी गांव