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श्री सेठिया जैन अन्धमाला...-:..
nimmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm ... दूत ने यह बात जाकर कोणिक राजा को कही । इसे सुनते ही कोणिक राजा अतिकुपित हुअा। उसने कहा-राज्य में उत्पन्न हुई सब श्रेष्ठ वस्तुओं का स्वामी राजा होता है । हार और हाथी भी मेरे राज्य में उत्पन्न हुए हैं इसलिये उन पर मेरा अधिकार है । वे मेरे ही भोग में आने चाहिये । ऐसा सोचकर उसने चेड़ा राजा के पास दूसरा दूत भेजकर कहलवाया-या तो आपहार हाथी सहित विहल्लकुमार को मेरे पास भेज दीजिये अन्यथा युद्ध के लिये तेश्यार हो जाइये।
चेड़ा राजा के पास पहुँच कर दूत ने कोणिक राजा का सन्देश कह सुनाया। चेड़ा राजा ने कहा-यदि कोणिक अनीति पूर्वक, शुद्ध करने को तय्यार हो गया है तो नीति की रक्षा के निमित्त मैं भी युद्ध करने को तयार हूँ।'
दूत ने जाकर कोणिक राजा को उपरोक्त बात कह सुनाई। उत्पश्चात काल, सुकाल आदि. दसं भाइयों को बुलाकर कोणिक. ने उनसे कहा-तुम लोग अपने राज्य में जाकर अपनी सेना लेकर शीघ्र आओ। कोणिक राजा की आज्ञा को सुनकर दसों भाई, अपनं राज्य में गये और सेना लेकर कोणिक की सेवा मे उपस्थितः हुए । कोणिक भी अपनी सेना को सज्जित कर तय्यार हुआ। फिर वे सभी विशाला नगरी पर चढ़ाई करने के लिये रवाना हुए । उनकी सेना में तेतीस हजार हाथी; तेतीस हजार घोड़े, तेतीस हजार रथ और तेतीस कोटि पदाति (पैदल सैनिक) थे। ; . __-इधर चेड़ा राजा ने अपने धर्म,मित्र काशी देश के नव मल्लि वंश के राजाओं को और कौशल देश के नव लच्छिवंश के राजाओं, को एक जगह बुलाया और पिहल्लकुमार विषयक सारी हकीकत कही। चेड़ा राजा ने कहा- भूपतियो ! कोणिक राजा, मेरी,न्याय संगत वात बी अवहेलना करके अपनी चतुरंगिणी सेना को लेकर