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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
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८,छठे में १०, सातवें में १२, आठवें में १२, नर्वे में १६,दसवें में १६,ग्यारहवें में २०,बारहवें में २०,तेरहवें में २०,चौदहवे में २०, पन्द्रहवें में १६, सोलहवें में १६, सतरहवें में १२, अठारहवें में १२ उन्नीसवें में १०, बीसवें में १०,इक्कीसवें में १०, बाईसवें में ८,तेईसर्वे में ८,चौवीसवें में ८,पच्चीसवें में ६, छब्बीसवें में ६,सत्ताईसवें में ४ और.अहाईसवें में भी ४ । कुल मिला कर ३०४ होते हैं। __रज्जु तीन प्रकार के होते हैं- (क) सूचीरज्जु (ख) प्रतररज्जु
और (ग) धनरज्जु । एक ही श्रेणी में रक्खे हुए चार खण्ड रज्जु मिल कर एक सूचीरज्जु होता है । सूचीरज्जु की लम्बाई एक राजू और मोटाई तथा ऊँचाई एक खण्डरज्जु होती है।
एक दूसरे पर रक्खे हुए चार सूचीरज्जुओं का एक प्रतर , रज्ज होता है। प्रतर रज्जु की लम्बाई और चौड़ाई पूरा राजू है
और मोटाई एक खण्ड राजू । इसमें सोलह खण्ड राजू होते हैं। चार प्रतर राजुओं को पास पास रखने पर एक घनराजू हो जाता
है। धनराज की लम्बाई,ऊँचाई और मोटाई सभी एक राजू हैं। • इसमें ६४ खण्ड राजू होते हैं।
अधोलोक में खण्ड राजुओं की संख्या ५१२ है। उन्हें १६ से भाग देने पर ३२ प्रतर राजों की संख्या निकल आती है। ऊर्ध्वलोक में १६ प्रतर राजू हैं । ३०४ को १६ से भाग देने पर इतनी ही संख्या निकल आती है। सारे लोक में ५१ प्रतररज्ज हैं।
सम्पूर्ण लोक में घन राजुओं की संख्या ३४३ है। यह संख्या जानने की विधि नीचे लिखे अनुसार है
नीचे से लेकर ऊपर तक लोक चौदह राजपरिमाण है। नीचे कुछ कम सात राजू,मध्य में एक राज, ब्रह्मलोक के मध्य में पाँच - राजू और लोक के अन्त में एक राजू विस्तार वाला है। वाकी स्थानों पर उसका विस्तार कम ज्यादह है। घन करने के लिए