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श्री जैन सिदान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग
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देशकी अपेक्षा वह अपदेश है। एक समय से अधिक दूसरे तीसरे समय में रहता हुआ वही जीव काल की अपेक्षा प्रदेश कहलाता है। निम्न लिखित चौदह द्वारों से सप्रदेशी और अप्रदेशी का विचार किया जायगा। सपएसामाहारग भविय सनिलेस्सा दिहि संजय कसाए। गाणे जोगुवोगे, वेदे य शरीर पज्जत्ती॥
(१) सप्रदेश (२) श्राहारक (३) भव्य (४) संज्ञी (५) लेश्या (६)दृष्टि(७) संयत (८) कपाय (8) ज्ञान (१०) योग (११) उपयोग (१२) वेद (१३) शरीर (१४) पर्याप्ति।
(१) समदेशद्वार-सामान्य जीव काल की अपेक्षा सप्रदेश हैं। नरयिक जीव कभी सप्रदेश और कभी अप्रदेश दोनों प्रकार के होते हैं अर्थात् जिस नैरयिक जीव को उत्पन्न हुए अभी एक ही समय हुआ है वह जीव काल की अपेक्षा अप्रदेश कहलाता है और जिस जीव को उत्पन्न हुए एक समय से अधिक हो गया है वह नैरयिक जीव सप्रदेश कहलाता है। एक वचन की अपेक्षा से ऐसा कथन कियागया है। बहु वचन की अपेक्षा इस प्रकार जानना चाहिए- उपपात विरह की अपेक्षा अर्थात् जब कोई भी नैरयिक उत्पन्न नहीं होता उस समय सभी नैरयिक जीव सपदेशकहलाते हैं। पूर्वोत्पन्न नैरयिकों में जब एक नैरयिक उत्पन्न होता है तब एक जीव अप्रदेश और बहुत जीव सप्रदेश यह भंग पाया जाता है। जब बहुत से जीव उत्पन्न होते रहते हैं तब बहुत जीव अप्रदेश और बहुत जीव सप्रदेश यह भंग पाया जाता है। इसी तरह सब जीवों में जानना चाहिए।
(२) आहारक-सामान्य जीव और एकेन्द्रिय जीवों को छोड़ कर श्राहारक जीवों में उपरोक्त तीन भांगे पाए जाते कभी 'सप्रदेश और कभीअप्रदेश' होते हैं। कभी 'एकजीव अप्रदेश