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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवां माग १६ " mmmmmmmmmrom~~~~~ ~ ummmmmmmmmmmmar
(१) उच्चारेसु-विष्ठा में (२) पासवणेसु-मूत्र में (2) खेलेसुकफ में (४) सिंघाणेस- नाक के मैल में (५) वंतेस-वमन में (६) पित्तेसु- पित्त में (७) पूएस- पीप, राध और दुर्गन्ध युक्त बिगड़े घान से निकले हुए खून में (८) सोणिएम-शोणित- खून में (8) सुक्कसु-शुक्र-वीर्य में (१०) सुक्कपुग्गल परिसाडेसु- वीर्य के त्यागे हुए पुद्गलों में (११) विगय जीव कलेवरेस-जीव रहित शरीर में (१२) थीपुरीस संजोएस-स्त्री पुरुष के संयोग (समागम) में (१३) णगर निद्धमणेसु- नगर की मोरी में (१४) सव्वेस असुइ हाणेसु-सब अशुचि के स्थानों में। ___ उपरोक्त चौदह स्थानों में संमूर्छिम मनुष्य उत्पन्न होते हैं। इनकी अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग परिमाण होती है। इनकी आयु अन्तर्मुहुर्त की होती है अर्थात् ये अन्तर्मुहूर्त में ही मर जाते हैं। ये असंज्ञी (मन रहित), मिथ्यादृष्टि, अज्ञानी होते हैं । अपर्याप्त अवस्था में ही इनका मरण हो जाता है।
(पनवणा पद, १ सूत्र ५६) (प्राचारांग) (मनुयोगद्वार ) ८२७- अजीव के चौदह भेद
जीवत्व शक्ति से रहित जड़स्वरूप वाले पदार्थ अजीव कहलाते हैं। अजीव केदो भेद हैं-रूपी अजीव और अरूपीअजीव अरूपी अजीव के दस भेद हैं___ (१) धर्मास्तिकाय (२) धर्मास्तिकाय के देश (३)धर्मास्तिकाय के प्रदेश (४) अधर्मास्तिकाय (५) अधर्मास्तिकाय के देश (६) अधर्मास्तिकाय के प्रदेश (७) आकाशास्तिकाय (C)आकाशास्तिकाय के देश (8) आकाशास्तिकाय के प्रदेश (१०) काल।
रूपी अजीव के चार भेद
(११) स्कन्ध (१२) स्कन्ध देश (१३) स्कन्ध प्रदेश और (१४) परमाणु पुद्गल ।
(पनवणा पद १,सूत्र ३)