________________ 488 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला कंताणं वेइत्ता झुक्रवो, नत्थि अवेइत्ता तवसा वा झोसइत्ता / प्रहारसमं पयं भवइ / भवइ य इत्थ सिलोगो जया य चयई धम्म, अणज्जो भोगकारणा। से तत्थ मुच्छिए वाले, प्रायई नावबुज्झइ // 1 // जया मोहा विश्रो होइ, इंदो वा पडिओ छम् / सव्वधम्मपरिब्भहो, स पच्छा परितप्पइ // 2 // जया अवंदिमो होइ, पच्छा होइ भवदिमो। देवया व चुभा ठाणा, स पच्छा परितप्पड़ // 3 // जया अ पूइमो होइ, पच्छा होइ अपूइमो / राया व रज्जपब्भहो, स पच्छा परितप्पइ // 4 // जया य माणिमो होइ, पच्छा ओइ अमाणिमो। सिटिव्व कब्बडे छूढो, स पच्छा परितप्पइ // 5 // जया अ थेरो होइ, समइक्कंत जुव्वणो। मच्छ व्च गलं गिलित्ता, स पच्छा परितप्पइ // 6 // जया अ कुकुड्बस्स, कुतत्तीहि विहम्मइ / हत्थी व बंधणे बद्धो, स पच्छा परितप्पइ // 7 // पुत्तदारपरिकिएणो, मोहसंताणसंतो। पंकोसन्नो जा नागो, स पच्छा परितप्पइ // 8 / / श्रज्ज अहं गणी हुँतो, भाविअप्पा बहुस्सुनो। जइऽहं रमंतो परिआए, सामगणे जिणदेसिए॥ 6 // देवलोगसमाणो अ, परिश्रामो महेसिणं / रयाणं अरयाणं च, महानरयसारिसो॥ 10 // अमरोवमं जाणिभ मुक्खमुत्तमं, रयाण परिआइ तहाऽरयाणं / निरओवमं जाणि दुक्रवमुत्तमं, रमिज्ज तम्हा परिआइपंडिए॥११॥