________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग 453 rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrman वैक्रियक लब्धिधारी,८०० मनःपर्ययज्ञानी, १४००वादी,२००० अनुत्तर विमानवासी हुए। __ भगवान् मल्लिनाथ को केवलज्ञान होने के दो वर्ष बाद उनके शासन में से जीव मोक्ष जाने लगे और उनके निर्वाण के पश्चात् वीस पाट तक जीव मोक्ष में जाते रहे। भगवान् मल्लिनाथ का शरीर उन्नीस धनुष ऊंचा था, शरीर का वर्ण प्रियंगु समान नीला था। ___ केवलज्ञान होने पर वे धर्मोपदेश करते हुए और अनेक भव्य प्राणियों का उद्धार करते हुए विचरते रहे। भगवान् मल्लिनाथ __ सौ वर्ष तक गृहस्थावास (छद्मस्थावस्था) में रहे / सौ वर्ष कम पच पन हजार वर्ष श्रमण पर्याय और केवल पर्याय का पालन कर ग्रीष्म ऋतु में समेदशिखर पर्वत पर पधारे और पादपोपगमन संथारा किया। उनके साथ पाँच सौ साधुओं और पाँच सौ साध्विओं ने भी संथारा किया। चैत्र शुक्ला चौथ के दिन अर्धरात्रि के समय भरणी नक्षत्र का चन्द्रमा के साथ योग होने पर वेदनीय, आयुष्य नाम,गोत्र इन चार अघाती कर्मों का नाश कर भगवान् मल्लिनाथ मोक्ष पधार गये। (8) जिनपाल और जिनरक्ष की कथा नवां 'माकंदी ज्ञात' अध्ययन- काम भोगों में लिप्त रहने वाले पुरुष को दुःख की प्राप्ति होती है और काम भोगों से विरक्त पुरुष को सख की प्राप्ति होती है। इस विषय की पुष्टि के लिए इस अध्ययन में जिनपाल और जिनरक्ष का दृष्टान्त दिया गया है। चम्पा नगरी में माकंदी नाम का सार्थवाह रहता था। उसके जिनपाल और जिनरक्ष नाय के दो पुत्र थे। उन दोनों भाइयों ने ग्यारह वक्त लवण समुद्र में यात्रा कर व्यापार द्वारा वहुत सा द्रव्य उपार्जन किया था। माता पिता के मना करने पर भी वे दोनों