________________ श्री जैन सिदान्त बोल संग्रह, पाचवा भाग 446 mmmmmmmmmmmmmmmmmmmm व्यापारियों ने अपना माल बेचा और वहाँ से नया माल खरीद कर जहाज में भर लिया। समुद्र यात्रा करते हुए वे चम्पा नगरी पहुँचे / वहॉ के राजा चन्द्रछाय के पूछने पर उन व्यापारियों ने मल्लिऊवरी के रूपलावण्य का वर्णन किया। उसे सुनकर चन्द्रछाय राजा ने अपना दूत कुम्भ राजा के पास भेजा कि मल्लिकुँवरी का विवाह उसके साथ कर दे। कुणाल देश में श्रावस्ती नगरी थी। वहाँ रूपी नाम का राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम धारिणी नाम सुवाहुकुमारी था / एक समय राजा ने बड़ी धूमधाम से सुबाहु कुमारी का स्नान महोत्सव मनाया। राजा ने अपने मंत्री वर्षधर से पूछा कि इससे पहिले तुमने कहीं ऐसा स्नान महोत्सव देखा है ? मन्त्री ने उत्तर दिया- मिथिला के राजा कुम्भ की पुत्री मल्लिकुंवरी का स्नान महोत्सव देखा था। यह उसके लाखवें अंश को भी प्राप्त नहीं होता है। __ मन्त्री द्वारा की गई मल्लिकुंवरी के रूप लावण्य की प्रशंसा को मुन कर राजा उसे प्राप्त करने के लिये आतुर होगया। तत्काल एक दत को बुला कर राजा ने उसे मिथिला भेजा और मल्लिकुंवरी की मांगणी (याचना) की / दूत मिथिला के लिए रवानाहोगया। ___ एक समय मल्लिकुंवरी के कानों के दिव्य कुण्डतों की सन्धि खल गई / राजा कुम्भ ने शहर के सारे सुनारों को बुलाया और उन टूटे हुए कुण्डलों की सन्धि जोड़ने के लिये कहा / सुनारों ने बहुत प्रयत्न किया किन्तु वे कुण्डलों की सन्धि नहीं जोड़ सके। राजा के पास आकर वे कहने लगे- राजन् ! यदि आप याज्ञा दें तो हम नये कुण्डल बना सकते हैं किन्तु इन टूटे हुए कुण्डलों की सन्धि जोड़ने में असमर्थ हैं। सुनारों की वात मुन कर राजापित हो गया। उसने सुनारों को अपने राज्य से निकल जाने की आज्ञा