________________ श्री जैन सिमान्त बोल सप्रह, पाचवा भाग 143 mammarnnr mm~ उन शालिकणों को लेकर अपने बन्धु वर्ग को दे दिया और कहा कि वर्षा होते ही इन शालिकणों को साफ किये हुए खेत में वो देना और बड़े होने पर फिर दूसरी जगह बोना इस तरह क्रमशः बोते रहना। बन्धुवर्ग ने उसके कथनानुसार कार्य किया। इस प्रकार पाँच वर्ष बीत गये। एक समय श्वसुर ने पुत्रवधुओं से वे पाँच शालिकरण वापिस मॉगे तब उन्होंने अपना अपना वृत्तान्त कह सुनाया। छोटी पुत्रबधू ने उन शालिकणों से पैदा हुए शालि धान्य के कई गाड़े भरवा कर मंगवाये और श्वसुर के सामने सारी हकीकत कही। श्वसुर ने उन चारों का वृत्तान्त सुन कर उनकी बुद्धि के अनुसार उन कोकाम सौंप दिया अर्थात् बड़ी बहू को घर का कचरा कूड़ा निका लने का, दसरी को रसोई बनाने का, तीसरी को भांडागारिणी का यानि घर के माल की रक्षा करने का काम सौंपा और चौथी वहू को अति बुद्धिमती समझ कर उसे घर की मालकिन बनाया। ___ उपरोक्त दृष्टान्त देकर भगवान् ने अपने शिष्यवर्ग को संबोधित करके फरमाया कि जो साधु साध्वी पॉच महाव्रतों को लेकर पहली और दूसरी बहू की तरह उनका त्याग कर देते हैं या रसने. न्द्रिय के वशीभूत हो खाने पीने में ही लग जाते है वे इस लोक में अयश अकीर्ति का उपार्जन कर निन्दा के पात्र होते हैं और चतुगति रूप संसार में परिभ्रमण करते रहते हैं / तीसरी और चौथी पुत्रवधू के समान जोसाधु साध्वी पॉच महाव्रतों को लेकर सख्यक प्रकार से उनका पालन करते हैं तथा अपने गुणों को अधिकाधिक बढ़ाते हैं वे इस लोक में विपल यश कीर्ति का उपार्जन कर पूज्यपद को प्राप्त करते हैं और अन्त में सिद्धपद को प्राप्त करते हैं। इस दृष्टान्त को जान कर भव्य प्राणियों को धर्म के विषय में अप्रमत्त रूप से प्रवृत्ति करनी चाहिए।