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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला ~ ~ ~ ~ ~ ~ war war arr ... ..
से जो कर्तव्याकर्तव्य को भूल कर परवश होजाता है और अपनी विचार शक्ति को खो देता है वह उन्मत्त कहलाता है। ___ (१०) अदर्शन-दृष्टि अर्थात् विना नेत्रों वाला अन्धा। अथवा दृष्टि अर्थात् सम्यक्त्व से रहित स्त्यानमृद्धि निद्रा वाला । अन्धा
आदमी जीवों की रक्षा नहीं कर सकता और स्त्यानगद्धि वाले से निद्रा में कई प्रकार के उत्पात हो जाने का भय रहता है। इस लिए वे दोनों दीक्षा के योग्य नहीं होते।
(११) दास-घर की दासी से उत्पन्न हुमा, अथवा दुर्मित आदि में धन देकर खरीदा हुमा या जिस पर कर्ज का भार हो उसे दास कहते हैं। ऐसे व्यक्ति को दीक्षा देने से उसका मालिक वापिस छुड़ाने का प्रयत्न करता है। इस लिए वह भी दीक्षा का
अधिकारी नहीं होता। __ (१२) दुष्ट-दुष्ट दो तरह का होता है-कषायदुष्ट और विषयदुष्ट । जिस व्यक्ति के क्रोध आदि कषाय बहुत उग्रहों उसे कपाय दुष्ट कहते हैं और सांसारिक कामभोगों में फंसे हुए व्यक्ति को विपयदुष्ट करते हैं।
(१३)मढ-जिस में हिताहित का विचार करने की शक्ति नहो। (१४) ऋणातें-- मिस पर राज्य मादि का ऋण हो। (१५) जुङ्गित- जुङ्गित का अर्थ है दूषित या हीन जुङ्गित तीन प्रकार का होता है- जाति जुंगित, कर्मजंगित और शरीर जुंगित। __ (क) जाति जुंगित- चंदाल, कोलिक, डोम आदि अस्पृश्य जाति के लोग जाति जुंगित हैं।
(ख) कर्म जुंगित- फसाई, शिकारी, मच्छीमार, धोबी आदि निन्ध कर्म करने वाले कर्म जंगित हैं।
(ग) शरीर जंगित- हाथ, पैर, कान, नाक, ओठ-इन अंगों से रहित,पंगु, कुबड़ा, बहरा, फाणा, कोढ़ी वगैरह शरीर जुंगित हैं ।