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श्री जैन सिद्धान्त घोल संघह, पांचवा भाग ४०१
www. mmmmm गति बानवे की-संख्यात वर्ष का कर्मभूमि मनुष्य, भसंख्यात वर्ष का कर्मभूमि मनुष्य,प्रकर्मभूमि, आन्तरद्वीपिक, स्थलचर युगलिया और सतासी ऊपर लिखे अनुसार।
(१८)मनुष्य में भागति छयानवें की-३८ ति छयालीस में से तेउकाय और वायुफाय के पाठ भेद छोड़ कर) मनुष्य के तीन,देवता के उनचास(दस भवनपति,आठ वाणव्यन्तर, पाँच ज्योतिषी, बारह देवलोक, नौ ग्रैवेयक और पाँच भनुत्तर विमान) पहली से लेकर छठी तक छह नरक। कुल मिला कर६६ । ___ गति एक सौ ग्यारह की-४६ तिर्यञ्च,३ मनुष्य, ४६ देवता७ नारकी, भसंख्यात काल का कर्मभूमि मनुष्य,भकर्मभूमि,आन्तर दीपिक, स्थलचर युगलिया, खेचर युगलिया और मोच । कुल मिला कर १११ हो जाते हैं।
(पन्नवणा पद ६) ८८६- लिपियाँ अठारह
जिस के द्वारा अपने भाव लिख कर प्रकाशित किए जा सके उसे लिपि कहते हैं। श्रार्यदेशों में अठारह प्रकार की ब्राह्मी लिपि काम में लाई जाती है। वे इस प्रकार हैं(१) ब्राह्मी
(१०) वैनयिकी (२) यवनानी
(११) निह्नविकी (३) दोसापुरिया (१२) अंकलिपि (४) खरोष्ठी
(१३) गणितलिपि (५) पुक्खरसरिया (१४) गंधर्वलिपि (६) भोगवती
(१५) आदर्शलिपि (७) पहराया
(१६) माहेश्वरी (८) अंतरवरिया (१७) दोमिलिपि (8) अक्खरपुहिया (१८) पौलिन्दी
(प्रज्ञापना पद १ सूत्र ७१) (समवायांग १८ वा)