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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
भावार्थ- देवेन्द्र, असुरेन्द्र और मनुजेन्द्रों की श्रेणी द्वारा वन्दित, राग द्वेष आदि दोष रूपी अग्नि को शान्त करने के लिए जल स्वरूप, वीतरागता रूपी परमैश्वर्य से सुशोभित, संसार रूपी समुद्र के लिए तीर, परमधीर, गम्भीर, आगमों का उपदेश देने वाले, मुनियों के मन रूपी आम्र वृक्ष पर वसने वाले कीर अर्थात् शुक पक्षी, मोक्ष मार्ग में सब से आगे चलने वाले सैनिक और तीर्थों की स्थापना करने वाले भगवान् महावीर को सदा वन्दन हो ॥ १ ॥
भक्तिपूर्वक प्रणाम करने वालों के मोह को काटने वाले, हे जिनेश्वर देव ! जीवादि सूक्ष्म पदार्थों की प्रकाशिका होने से सूर्य के तेज को लज्जित करने वाली, कल्याण को देने वाली, गहन तर्क और युक्तियों से गुँथी हुई, सत्य वस्तु को प्रकट करने वाली होने से सर्वत्र अप्रतिहत, प्रतिवादियों के गर्व का नाश करने वाली तथा अज्ञान के अन्धकार को दूर करने वाली आपकी वाणी मेरे बाह्य और आभ्यन्तर शत्रुओं पर विजय प्राप्त करे ।
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