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श्री जैम सिद्धान्त बोल संमह, पाचवा भाग ३७१ ~_~ ~ ~ ~ ~~~~v .
m mmmmmmmmmwww के समय इस बात को छिपा रखने के लिए उसे उलहना दिया गया। साध्वियों ने पद्मावती को गुप्त रूप से रन लिया, जिससे धर्म की निन्दा न हो और गर्भ को भी किसी प्रकार का धक्का न पहुंचे।
समय पूरा होने पर पद्मावती ने मुन्दर पालक को जन्म दिया। साध्वियाँ इस बात से असमञ्जस में पड़ गई। लोकव्यवहार के अनुसार वे बालक को अपने पास नहीं रख सकती थीं किन्तु उस की रक्षा भी आवश्यक थी। दूसरी साध्वियों को इस प्रकार असमञ्जस में देख कर पद्मावती ने करा- इस विषय में चिन्ता करने की कोई आवश्यकता नहीं है। मैं स्वयं सारी व्यवस्था कर लँगी जिससे लोक निन्दा भी न हो और बालक की रक्षा भी हो जाय।
रात पड़ने पर पद्मावती बालक को लेकर श्मशान में गई। जलती हुई चिना के प्रकाश में उमने वालक को इस तरह रख दिया जिससे आने जाने वाले की दृष्टि उस पर पड़ जाय । स्वयं एक झाड़ी के पीछे छिप कर देखने लगी।
थोड़ी देर बाद वहाँ एक चण्डाल आया। वह श्मशान भूमि का रक्षक था। उसके कोई सन्तान न थी। वालफ को देख कर वह बहुत प्रसन्न हुआ और मन ही मन कहने लगा- मेरे भाग्य से कोई इस सालक को यहाँ छोड़ गया है। मेरे कोई सन्तान नहीं है। आज इस पुत्र की प्राप्ति हुई है। यह कर कर उसने बालक को उठा लिया।
घर जाकर चण्डाल ने बालक अपनी स्त्री को सौंप दिया। साथ में कहा- हमें इस पुत्र की प्राप्ति हुई है। इसे अच्छी तरह पालना। चण्डाल की स्त्री उस सुन्दर वालक को देख कर बहुत प्रसन्न हुई।
पद्मावती चण्डाल के पीछे पीछे गई थी। सारा हाल देख फर उसे सन्तोष हो गया कि भव बालक का भरण पोषण होता रहेगा। वापिस उपाश्रय में आकर वह धर्मध्यान में लीन रहने लगी।