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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाचचा भाग
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कारण कष्ट हश्रा है उनसे क्षमा मांगती हूँ । इसी प्रकार त्रस मर्थात् बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय जीवों की मन, वचन या काया से हिंसा की हो, कराई हो या उसका अनुमोदन किया हो तो मेरा वह पाप मिथ्या होवे। मैं उसके लिए हृदय से पश्चात्ताप करती हूँ। यदि मैंने देवरानी, जेठानी, ननद, मौजाई, साम, समुर, जेठ, देवर भादि किसी भी कुटुम्बी को मर्मभेदी वचन कहा हो, उनकी गुप्त बात को प्रकट किया हो, धरोहर रक्खी हुई वस्तु को दवाया हो या और किसी प्रकार से उन्हें कष्ट पहुँचाया हो तो मेरा यह पाप मिथ्या होवे। मैं उनसे वारवार क्षमा माँगती हूँ। यदि मैंने जानते हुए या विनाजाने कभी झूठ बोला हो, चोरी की हो, स्वप्न में भी परपुरुष के लिए बुरी भावना की हो, परिग्रह का अधिक संचय किया हो,धन,धान्य, कुटुम्ब श्रादि पर ममत्व रक्खा होतो मेरा वह पाप निष्फल होवे। यदि मैं धन पाकर गर्व किया हो, किसी की निन्दा या चुगली की हो, इधर उधर बातें बना कर दो व्यक्तियों में झगड़ा फराया हो, किसी पर झूठा कलंक लगाया हो, धर्मकार्य में भालस्य किया हो, अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिये माया जाल रचा हो, किसी को धोखा दिया हो, सच्चे देव, गुरु तथा धर्म के प्रति अविश्वास किया हो, अधर्म को धर्म समझा हो तो मेरा वह पाप मिथ्या हो । मैं उसके लिए पश्चात्ताप करती हूँ। अपने अपराध के लिए संसार के सभी जीवों से क्षमा माँगती हूँ।संसार के सभी प्राणी मेरे मित्र हैं। मेरी शत्रता फिसी से नहीं है। ___ इस प्रकार आलोयणा करने से पद्मावती का दुःख कुछ हल्फा हो गया। उसे वहीं पर नींद आ गई।
उठने पर पद्मावती ने नगर के लिए मार्ग खोजना शुरू किया। खोजते खोजते वह एक आश्रम में पहुंच गई। आश्रम निवासियों ने उसका अतिथिसत्कार किया। स्वस्थ होने पर उन्होंने उसे नगर