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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाचवां भाग
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अर्थात् - दुष्कर ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले पुरुषों को देव, दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, किन्नर आदि सभी नमस्कार करते हैं ।
धर्मोपदेश सुन कर सभी लोग अपने स्थान को वापिस चले गये । सती शिवा देवी को संसार मे विरक्ति होगई । राजा चण्डप्रद्योतन की आज्ञा लेकर उसने दीक्षा अङ्गीकार कर ली । वह विविध प्रकार की कठोर तपस्या करती हुई विचरने लगी । थोड़े ही समय में सब कर्मों का क्षय करके उसने मोक्ष प्राप्त किया ।
(१२)
कुन्ती
प्राचीन समय में शौर्यपुर नाम का नगर था। वहाँ राजा अन्धक दृष्णि राज्य करता था । पटरानी का नाम सुभद्रा था । उसकी कुक्षि से समुद्र विजय, अक्षोभ, स्तिमित, सागर, हिमवान्, अचल, धरण, पूरण, अभिचन्द्र और वसुदेव ये दस पुत्र उत्पन्न हुए | ये दस दशाई कहलाते थे। इनके दो बहनें थीं- कुन्ती और माद्री । दोनों का रूप लावण्य अद्भुत था ।
हस्तिनापुर में पाण्डु राजा राज्य करता था । वह महारूपधान्, पराक्रमी और तेजस्वी था | महाराज अन्धकदृष्णि ने अपनी दोनों पुत्रियों का विवाह पाण्डु राजा के साथ कर दिया । ये दोनों रानियाँ बड़ी ही विदुषी, धर्मपरायणा और पतिव्रता थीं। इनमें सौतिया डाह विल्कुल न था । वे दोनों प्रेमपूर्वक रहती थीं । पाण्डु राजा दोनों रानियों के साथ आनन्द पूर्वक समय बिताने लगा । कुछ समय पश्चात् कुन्ती गर्भवती हुई। गर्भ समय पूरा होने पर कुन्ती ने एक महान तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया । पुत्रजन्म से पाण्डु राजा को बहुत प्रसन्नता हुई। बड़ी धूमधाम से उसने पुत्र जन्मोत्सव मनाया और पुत्र का नाम युधिष्ठिर रखा। इसके पश्चात् कुन्ती की कुक्षि से क्रमशः भीम और अर्जुन नाम के दो पुत्र और उत्पन्न हुए। रानी माद्री की कुत्ति से नकुल और सहदेव नामक दो पुत्र