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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
पासत्य विडारी,ओसण्णा,ओसण्ण विडारी,कुमीला,कुसीलविहारी, संसत्ता और संसत्त विहारी होगई अर्थात् संयम में शिथिल होगई।
इस प्रकार कई वर्षों तक साधुपर्याय का पालन कर अन्तिम समय में पन्द्रह दिन की संलेखना की। अपने अयोग्य आचरण की मालोचना और प्रतिक्रमण किये विना ही वह कालधर्म को प्राप्त होगई। मर कर ईशान देवलोक में नव पल्योपम की स्थिति वाली देवगणिका (अपरिगृहीता देवी) हुई। ___ जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में पञ्चाल देश के अन्दर एक अति रमणीय कम्पिलपुर नाम का नगर था। उसमें द्रुपद गजा राज्य करता था । उसकी पटरानी का नाम चुलणी था। उनके पुत्र का नाम धृष्टद्युम्न था। वह युवराज था। ईशान कल्प का आयुष्य पूरा होने पर सुकुमालिका का जीव गनी चुलणीकी कुक्षि से पुत्री रूप में उत्पन्न हुआ। माता पिता ने उसका नोम द्रौपदी करवा ।
पाँच धायों द्वारा लालन पालन की जाती हुई द्रौपदी पर्वत की गुफा में रही हुई चम्पफलता की तरह बढ़ने लगी। क्रमशःवाल्यावस्था को छोड़ कर वह युवावस्था को प्राप्त हुई। राजा द्रुपद को उसके लिये योग्य वर की चिन्ता हुई। __राजा द्रुपद ने द्रौपदी का स्वयंवर करने का निश्चय किया । नौकरों को बुला कर उसने स्वयंवर मण्डप बनाने की आज्ञा दी। मण्डप तैयार हो जाने पर द्रुपद राजा ने अनेक देशों के राजाओं के पास दूतों द्वारा आमन्त्रण भेजे।
निश्चित तिथि पर विविध देशों के अनेक राजा और राजकुमार स्वयंवर मण्डप में उपस्थित हुए। कृष्ण वासुदेव भी अनेक यादवकुमार और पांच पाण्डवों को साथ लेकर वहाँ आये। सभी लोग अपने अपने योग्य आसनों पर बैठ गये। स्नान करके वस्त्राभूषणों से अलंकृत होकर राजकुमारी द्रौपदी एक दासी के साथ स्वयंवर मण्डप