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१५.
श्री सेठिया बैन प्रबमाला
इसके पश्चात् एक समय जिनदत्त सागरदत्त के घर गया। उचित सत्कार करने के पश्चात् सागरदत्त ने उसे आने का कारण पूछा। जिनदत्त ने अपने पुत्र सागर के लिये सुकुमालिका की मॉगणी की। सागरदत्त ने कहा- हमारे यह एक ही सन्तान है। हमें यह बहुत प्रिय है। हम इसका वियोग सहन नहीं कर सकते, इस लिये यदि भापका पुत्र हमारे यहाँ घरजमाई तरीके रहे तो मैं अपनी पुत्री का विवाह उसके साथ कर सकता हूँ। जिनदत्त ने सागरदत्त की यह शर्त स्वीकार कर ली। शुभ मुहूर्त देख कर सागरदत्त ने अपनी पुत्री सुकुमालिका का विवाह सागर के साथ कर दिया। __सागरको सुकुमालिका के अङ्ग का स्पर्श असिपत्र (खड्ग) के समान अति तीक्ष्ण और कष्टकारक प्रतीत हुआ। सोती हुई सकुमालिका को छोड़ कर वह अपने घर भाग अाया। पति वियोग से मुकुमालिका उदासीन और चिन्तित रहने लगी।
पिता ने कहा- पुत्री ! यह तेरे पूर्व भव के अशुभ कर्मों का फल है। तू चिन्ता मत कर। अपने रसोईघर में अश-, णन आदि वस्तुएं हर समय तैयार रहती हैं, उन्हें साधुमहात्माओं का वहराती हुई तू धर्म ध्यान कर। ___ मुकुमालिका पिता के कथनानुसार कार्य करने लगी। एक समय गोपालिकानाम की बहुश्रुत साध्वी अपनी शिष्याओं के साथ वहाँ भाई। अशन, पान आदि बहराने के पश्चात् सुफुमालिका ने उनसे पछा- हे श्रार्याओ! तुम बहुत मंत्र तंत्र जानती हो । मुझे भी ऐसा कोई मंत्रवतलाओ जिससे मैं अपने पति कोइष्ट हो जाऊँ। साध्वियों ने कहा-हे भद्रे! इन बातों को बताना तो दूर रहा, हमें ऐसी बातें मनना भी नहीं कल्पता। साध्वियों ने सुकुमालिका को केवलिभापित धर्म का उपदेश दिया जिससे उसे मंसार से विरक्ति होगई। अपने पितासागरदत्त की आज्ञा लेकर उसने गोपालिका प्रायोके