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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
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इसके रूप परमोहित हो गए हैं। उसे अपने पति पर सन्देह हो गया। किन्तु किसी प्रमाण के बिना कुछ कहने का साहस न कर सकी।
वसमती के आते ही रथी के घर का रंग दंग बिल्कुल बदल गया। सब चीजें साफ सुथरी और व्यवस्थित रहने लगीं। नौकर चाकर तथा परिवार के सभी लोग प्रसन्न रहने लगे। वसुमती के गुणों से आकृष्ट हो कर सभी लोग उसकी प्रशंसा करने लगे। रथी उसके गुणों को वखानते न थकताथा। उसकी स्त्री को अब कुछ भी काम न करना पड़ता था फिर भी उसकी आँखों में वसमती सदाखटका करती थी। वह सोच रही थी, मेरे पति दिनप्रतिदिन वसमती की ओर झुक रहे हैं। कहीं ऐसा न हो कि वह मेरास्थान छीन ले। इसलिए जितनाशीघ्र हो सके, इसे घर से निकाल देना चाहिए। मन में यह निश्चय करके वह मौका ढूँढने लगी।
वसमती घर के काम में इतनी व्यस्त रहती थी कि अपने खान पान का भी ध्यान नथा। किसी काम में किसी प्रकार कीगन्ती न होने देती थी। इतने पर भी रथी की स्त्री उसके प्रत्येक काम में गल्ती निकालने की चेष्टा करती। उसके किए हुए काम को स्वयं विगाड़ कर उसी पर दोप मढ़ देती । इतने पर भी वसुमती चब्ध न होती। वह उत्तर देती-माताजी! भूल से ऐसा हो गया । भविष्य में सावधान रहूँगी। रथी की स्त्री को विश्वास था कि इस प्रकार प्रत्येक कार्य में गल्ती निकालने पर वसुमती या तो स्वयं तंग हो कर चली जाएगी या किसी दिन मेरा विरोध करेगी और मैं स्वयं झगड़ा खड़ा करके इसे घर से निकलवा दूंगी किन्तु उसका यह उपाय व्यर्थ गया । वसुमती ने क्रोध पर विजय प्राप्त कर रक्खी थी, इस लिए सारथी की स्त्री के कड़वे वचन और झूठे आरोप उसे विचलित न कर सके।
वसुमती की कार्यव्यस्तता देख कर एक दिन सारथी ने उसे