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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला mornrmmmmmmmmmmmmmmm चाहिए। माता के रहन सहन, भोजन और विचारों का गर्भ पर पूरा असर होता है, इस लिए माता को इस प्रकार रहना चाहिए जिससे स्वस्थ, सुन्दर और उत्तम गुणों वाली सन्तान उत्पन्न हो।
सुमंगला रानी ने अपनी सन्तान को श्रेष्ठ भौर सद्गुण सम्पन्न बनाने के लिए ऊपर कहे हुए नियमों का अच्छी तरह पालन किया। गर्भ का समय पूरा होने पर शुभ समय में सुमंगला रानी के पुत्र और पुत्री का जोड़ा उत्पन्न हुआ।
सुनन्दा रानी ने भी ऊपर कहे हुए चौदह स्वमों में से चार महास्वम देखे । गर्भकाल पूरा होने पर उसने भी पुत्र पुत्री के जोड़े को जन्म दिया। इसके बाद सुमंगला रानी न पत्रों के उनचास जोड़ो को जन्म दिया। इस प्रकार श्रादि राजा ऋषभदेव के सौ पुत्र और दो पुत्रियाँ हुई।
सुमंगला देवी ने जिस जोड़े को पहले पहल जन्म दिया उसमें पुत्र का नाम भरत और पुत्री का नाम ब्राह्मी रक्खा गया। सुनन्दा देवी के पुत्र का नाम बाहुवली और पुत्री का नाम सुन्दरी रक्खा गया।
पुत्र और पुत्री जब सीखने योग्य उमर के हुए तो उनके पिता ऋषभदेव ने अपने उत्तराधिकारी भरत कोसभी प्रकार की शिल्पफला, ब्राह्मी को १८ प्रकार की लिपिविद्या और सुन्दरी को गणित विद्या सिखाई । भरत को पुरुष की७२ कलाएं और ब्राह्मी को स्त्री की ६४ कलाएं सिखाई। __ ऋषभदेव वीस लाख पूर्व कुमारावस्था में रहे। इसके बाद त्रेसठ लाख पूर्व तक राज्य किया। एक लाख पूर्व आयुष्य वाकी रहने पर अर्थात् तेरासी लाख पूर्व की आयु होने पर उन्होंने राज्य का कार्य भरत को सम्भला दिया। वाहुवली आदि निन्यानवें पत्रों को भिन्न भिन्न देशों का राज्य दे दिया। एक वर्ष तक बरसी दान देकर दीक्षा अंगीकार की। एक वर्ष की कठोर तपस्या के