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श्री मेठिया जैन ग्रन्थमाला
(१३)जैसे जम्बूद्वीप के अधिपति अनाहन नामक देव का जम्बू वृक्ष सब वृक्षों में शोभित होता है वैसे ही सब साधुओं में बहुश्रुत ज्ञानी साधु शोभित होता है।
(१४) नीलवान् पर्वत से निकल कर सागर में मिलने वाली सीता नाम की नदी जिस प्रकार सब नदियों में श्रेष्ठ है उसी प्रकार सब साधुओं में बहुत ज्ञानी श्रेष्ठ है।
(१५) जिस प्रकार सबपर्वतों में ऊंचा, सुन्दर और अनेक औषधियों से शोभित मेरु पर्वत उत्तम है उसी प्रकार अमपौंपधि आदि लब्धियों से युक्त अनेक गुणों से अलंकृत वहश्रत ज्ञानी भी सब साधुओं में उत्तम है। __(१६)जैसे अक्षय उदक ( जिसकाजल कभी नहीं सूखता) स्वयम्भूरमण नामक समुद्र नाना प्रकार की मरकत आदि मणियों से परिपूर्ण है वैसे ही बहुश्रुत ज्ञानी भी सम्यग् ज्ञान रूपी अक्षय जल से परिपूर्ण और अतिशयवान् होता है इसलिये वह सब साधुओं में उत्तम और श्रेष्ठ है। __उपरोक्त गुणों से युक्त, समुद्र के समान गम्भीर, परीपह उपसगों को समभाव से सहन करने वाला. कामभोगों में अनासक्त, श्रुत से परिपूर्ण तथा समस्त प्राणियों का रक्षक महापुरुष बहुश्रुत ज्ञानी शीघ्र ही काँका नाश कर मोक्षमाप्त करता है। ___ ज्ञान अमृत है। वह शास्त्रों द्वाग, सत्संग द्वारा और महापुरुपों की कृपाद्वारा प्राप्त होता है, अत: मोनाभिलापी प्रत्येक प्राणी को श्रत (ज्ञान)प्राप्ति के लिये निरन्तर प्रयत्न करना चाहिये।
( उत्तराव्ययन अध्ययन ११ गाथा १५ से ३०) ८६४- दीक्षार्थी के सोलह गुण
गृहस्थ पर्याय छोड़ कर पाँच महाव्रत रूप संयम अंगीकार करने को दीक्षा कहते हैं । दीक्षा अर्थात् मुनिव्रत अंगीकार करने वाले