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________________ مجم श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला को पूरा किए बिना दुसरा काम शुरू नहीं करता। (२) अमायी (सरल) होता है अर्थात् गुरु आदि से छल, कपट नहीं करता। (४) अकुतूहली अर्थात् क्रीड़ा से सदा दर रहता है। खेल, तमाशे आदि देखने की लालसा नहीं करता। (५) विनीत शिष्य अपनी छोटी सी भूल को भी दर करने की कोशिश करता है। वह किसी का अपमान नहीं करता। (६)वह क्रोध नहीं करता तथा क्रोधोत्पत्ति के कारणों से भी सदा दूर रहता है। (७) मित्र का प्रत्युपकार करता है अर्थात् अपने साथ किए हुए उपकार का बदला चुकाता है । वह कभी कृतघ्न नहीं बनता। (८) विद्या पढ़ कर अभिमान नहीं करता किन्तु जैसे फलों के आने पर हत्त नीचे की ओर झुक जाता है उसी प्रकारविद्या रूपी फल को प्राप्त कर वह नम्र बन जाता है। (8)किसी समय आचार्यादिद्वारा किसी प्रकार की स्खलना (गल्ती) हो जाने पर उनका तिरस्कार तथा अपमान नहीं करता अथवा वह पाप की उपेक्षा नहीं करता। (१०) बड़े से बड़ा अपराध होने पर भी कृतज्ञता के कारण मित्रों पर क्रोध नहीं करता। (११) अप्रिय मित्र का भी पीठ पीछे दोप प्रकट नहीं करता अर्थात जिसके साथ एक बार मित्रता कर ली है, यद्यपि वह इस ममय सैकड़ों अपकार (बुगई) भी कर रहा हो, तथापि उसके पहले के उपकार (भलाई) का स्मरण कर उसके दोप प्रकट नहीं करता अपितु उसके लिए भी कल्याणकारी वचन ही कहता है। (१२) कलह और डमर (लड़ाई) से सदा दूर रहता है। (१३) कुलीनपने को नहीं छोड़ता अर्थात् अपने कोसौंपे हुए
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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