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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
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तेइन्द्रिय, चरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय ।
(३) कायमागणास्थान के छः भेद- पृथ्वीकाय, अकाय, तेउकाय, वायुफाय, वनस्पतिकाय और त्रसकाय ।
(४)योग के तीन भेद-मनोयोग, वचनयोग और काययोग। (५) वेद के तीन भेद- पुरुषवेद, स्त्रीवेद और नपुंसकवेद । (६)कषाय के चार भेद- क्रोध, मान, माया और लोभ ।
(७) ज्ञानमार्गणा के आठ भेद-मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान, केवलज्ञान, मत्यज्ञान, श्रुताज्ञान, विभंगज्ञान।
(८) संयममार्गणास्थान के सात भेद- सामायिफसंयम, छेदोपस्थापनीयसंयम, परिहारविशुद्धिसंयम, सूक्ष्मसम्परायसंयम, यथाख्यातसंयम, देशविरति और अविरति ।
(६) दर्शनमार्गणा के चार भेद- चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन और केवलदर्शन।
(१०) लेश्या के छः भेद-कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या, तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या ।
(११) भव्यत्वमार्गणा के दो भेद-भव्य और अभव्य । (१२) सम्यक्त्वमार्गणा के छः भेद
(क) औपशमिक सम्यक्त्व-अनन्तानुबन्धी चार कषाय और दर्शनमोहनीय के उपशम से प्रकट होने वाला तत्त्वरुचि रूप आत्मपरिणाम औपशमिक सम्यक्त्व है। इसके दो भेद हैं- ग्रन्थिभेदजन्य और उपशमश्रेणिभावी । (अ) ग्रन्थिभेदजन्य औपशमिक सम्यक्त्व अनादि मिथ्यात्वी भव्य जीवों को होता है। इसके प्राप्त होने की प्रक्रिया निम्नलिखित है
जीव अनादिकाल से संसार में घूम रहा है और तरह तरह के दुःख उठा रहा है जिस प्रकार पर्वतीय नदी में पड़ा हुआ पत्थर लुढकते लुढकते इधर उधर टक्कर खाता हुअा गोल और चिकना