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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह. बौथा भाग
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नहीं देते।
समाधान- भगवान ने उत्तर दिया।हेमकम्पित अपने केवल. झान द्वारा मैं नारकी जीवों को प्रत्यय देख रहा हूँ। इसलिए यह कहना ठीक नहीं है कि नारकी जीव किसी के प्रत्यन नहीं हैं।
शक्षा-भगवन् ! आपके ज्ञान में प्रत्यच होने पर भी हम तो उसी वस्तु को मानते हैं जो हमारे प्रत्यक्ष हो।
समाधान-यह तुम्हारा दुराग्रह है। प्रत्येक व्यक्ति अगर यह निधय कर ले कि मैं अपनी आँखों से देखी हुई वस्तु कोही मानू गा तो दुनियाँ का व्यवहार ही न चले । बहुत से काम, गांव, नगर, नदियाँ, नाले, समुद्र, भूत और भविष्यत्काल की बातें तुम्हें प्रत्यक्ष नहीं है किन्तु उन्हें मान कर व्यवहार करते हो। इसलिए अपनी
आँखों से देखी हुई वस्तु कोही मानना ठीक नहीं है । बहुत सी बातों में दूसरे द्वारा साक्षात की गई वस्तु पर भी विश्वास करना पड़ता है। वास्तव में देखा जाय तो वस्तु को आत्मिक ज्ञान द्वारा जानना ही वास्तविक प्रत्यक्ष है। इन्द्रियों द्वारा जानना तो वास्तव में परोक्ष है। केवल व्यवहार में उसे प्रत्यक्ष मान लिया जाता है। ऐन्द्रियक ज्ञान में जीव वस्तु को साचाद नहीं जानता किन्तु इन्द्रियों द्वारा जानता है। इसलिए इन्द्रियों का व्यवधान होने से यह ज्ञान परोक्ष है। शङ्का-प्रतीन्द्रिय प्रत्यक्ष इन्द्रिय प्रत्यक्ष से अधिक कैसे जानता है।
समाधान-जैसे पाँच खिड़कियों वाले कमरे में बैठा हुमा व्यक्ति जितना जानता है, दीवारै हट जाने पर खुले प्रदेश में बैठा हुमा व्यक्ति उससे कहीं अधिक जानता है, हमी प्रकार इन्द्रिय जाग से मान्यज्ञान अधिक विस्तृत शार विशद होता है। . नीचे लिख भनुपान से भी नरक की सिद्धि होती है-उस्कट पाप का फल भोगने वाले कहीं रहते हैं, क्योंकि कर्म का फल भोगना । ही पड़ता है, जैसे कर्मफल को भोगने वाले मनुष्य और तिर्गश्च ।