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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
शङ्का - अगर व्यक्तिगत रूप से देखा जाय तो सभी सिद्ध जीवों की आदि है, क्योंकि कर्म खपाने के बाद ही जीव वहाँ पहुँचते हैं। सभी जीवों की आदि मानने पर प्रथम जीव के मोक्ष जाने से पहले सिद्ध क्षेत्र को खाली मानना पड़ेगा ।
समाधान- जिस प्रकार प्रत्येक समय का प्रारम्भ होने पर भी यह नहीं कहा जा सकता कि कालद्रव्य अमुक समय शुरू हुआ और इस से पहले काल नहीं था, उसी प्रकार मोक्ष को समष्टिरूप से सादि नहीं कहा जा सकता ।
• शङ्का- सिद्ध क्षेत्र का विस्तार अढाई द्वीप (मनुष्य क्षेत्र) जितना ही है । जीव अनन्तकाल से सिद्ध हो रहे हैं और अनन्तकाल तक होते रहेंगे । थोड़े से क्षेत्र में इतने जीव कैसे समा सकते हैं ?
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समाधान- सिद्ध जीव अमूर्त हैं इस लिए एक दूसरे का प्रतिघात नहीं करते । थोड़े से क्षेत्र में भी वे अनन्त रह सकते हैं । जैसे किसी द्रव्य के सूक्ष्म होने पर उस पर अनन्त सिद्धों का ज्ञान पड़ता है, एक ही नर्तकी पर हजारों दृष्टियाँ गिरती हैं, छोटे से कमरे में सैकड़ों दीपों की प्रभासमा जाती है, एक पुरुष के ज्ञान में अनेक वस्तुओं का चित्र समाविष्ट हो जाता है, उसी प्रकार सिद्ध भी एक दूसरे का बिना प्रतिघात किए परिमित क्षेत्र में भी अनन्त रहते हैं ।
इस प्रकार युक्ति के द्वारा समझाया जाने पर मण्डित स्वामी का संशय दूर हो गया और वे भगवान के शिष्य हो गए । . (७) मौर्यस्वामी - वन्दना करने के लिए आए हुए मौर्यस्वामी को भगवान ने कहा- हे मौर्य ! तुम्हारे मन में संशय है कि देव हैं या नहीं ?. वेदों में दोनों प्रकार की श्रुतियाँ मिलने से तुम्हें यह सन्देह हुआ है । किन्तु तुम्हें यह संशय नहीं करना चाहिए, क्योंकि तुम भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक चारों प्रकार के देवों को दर्शनों के लिए आते हुए देख रहे हो। प्रत्यक्ष होने के कारण तुम्हें
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