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श्री सेठिया जैन मन्यमाला
हेतु से साध्य का अनुमान होता है। यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि भूत पिशाच ग्रह आदि का कहीं प्रत्यक्ष दर्शन न होने पर भी किसी शरीर में विविध चेष्टानों से अनुमान किया जाता है।
शरीर किसी के द्वारा किया गया है, क्योंकि आदि और निश्चित आकार वाला है। जैसे घट । जिस का कोई कर्ता नहीं होता वह आदि और निश्चित आकार वाला नहीं होता, जैसे बादलों का आकार या मेरुपर्वत । तथा इन्द्रियाँ किसी के द्वारा अधिष्ठित हैं क्योंकि करण हैं जैसे दण्ड, चक्र, चीवर आदि करण होने के कारण कुम्हार द्वारा अधिष्ठित हैं। जिसका कोई अधिष्ठाता नहीं होता वह करण भी नहीं होता, जैसे आकाश। इन्द्रियों का अधिठाता जीव ही है।
जहाँ आदान (लेना) और आदेय भाव लिया जाना) होता है वहाँ आदाता अर्थात् लेने या ग्रहण करने वाला भी अवश्य होता है, जैसे संडासी और लोहे में आदानादेयमाव है तो वहाँ आदाता लुहार है। इसी प्रकार इन्द्रियाँ ग्रहण करती हैं और विषय ग्रहण किए जाते हैं तो वहाँ ग्रहीता या आदाता भी अवश्य होना चाहिए
और वह आदाता जीव है। जहाँ प्रादाता नहीं है वहाँ आदानादेयभाव भी नहीं होता जैसे आकाश में।
देह आदि का कोई भोक्ता है, क्योंकि ये भोग्य हैं। जैसे भोजन वस्त्रादि का मोक्ता है। जिस वस्तु का कोई भोक्ता नहीं होता उसे भोग्य नहीं कहा जा सकता जैसे आकाश के फूल । शरीर श्रादि का कोई स्वामी है क्योंकि संघातरूप हैं, मूर्त हैं, इन्द्रियों के विषय हैं, दिखाई देते हैं। जैसे नाट्यगृह आदि के स्वामी सूत्रधारवगैरह। जो बिना स्वामी का होता है वह संघात आदि रूप वाला भी नहीं होता जैसे आकाश के फूल। शरीर प्रादि संघातरूप हैं इसलिए इनका कोई स्वामी है।