________________ (58) भ्रम से फिरे भटकता चेतन, यूँही उमर खोई / / . 3 ससार भावना जनममरण अरु जरारोग से, सदा दुखी रहता। द्रव्य क्षेत्र अरु कारा भाव भव, परिवर्तन सहता।। छेदन भेदन नरक पशुगनि, वध बधन सहना / राग उदय से दुख सुरगति में, कहां सुखी रहना / / भोगि पुण्यफल हो इसइन्द्री, क्या इसमें काली! जुतबाली दिन चार वही फिर, खुरपा अरु जाली / / मानुषजन्म अनेक विपत्तिमय, कहीं न सुख देखा। पंचमगति सुख मिले शुभाशुभ, को मेटो लेखा। 4 एकत्व भावना जन्मे मरे अकेला चेतन, सुख दुख का भोगी। और किसी का क्या इक दिन यहा देह जुदो होगी। कमला चलत न पिँड, जाय मर. घट तक परिवारा। अपने अपने सुख को रोवे, पिता पुत्र दारा॥१०॥ ज्यौ मेले में पथीजन मिति नेह फिरे धरते / ज्यों तरवर रन बसेरा पछी था करते / / कोस.कोई दा कोस कोई एड फिर थक थक हारे / जाय अकेला इस संग मे कोई न पर मगरे // 11 // 5 मिन (परपक्ष, अन्यत्व) भावना भोहरूप मृगतृष्णां जग में, मिथ्या जल चमके। भृग चेतन नित भ्रम में उठ उठ, दौड़े थक थकके। जल नहिं पावे प्राण गमावे, भटक भटक मरता। पशु पराई माने अपनी, भेद नहीं करता / / 12 // तू चेतन अरु देह अचेतन, यह जड़ तू ज्ञानी। मिले अनादि यतनः विछुड़े, ज्यौ पय अरु पानी / / रूप तुम्हारा सबसों न्यारा, भेद ज्ञान करना। जो लों पौरुष थके न तौलों, उद्यमसों धरना / / ६.अशुचि भावना सूनित पोखे यह.सूखे ज्यौं घोरे त्यो मैती। . निश दिन करे उपाय देह का, रोग दशा फेली। पैंड-एक पैर, एक कदम