________________ श्री बेन-विद्वान्त-बोब-संमहा था भाग 19 . (3) कायदुप्पणिहाणे-सामायिक के समय बिना देखी और बिना पूँजी जमीन पर उठना,बैठना, शरीर से अशुभ प्रवृत्ति करनाने सामाइयस्स सइ अकरणयाए-सामायिक की स्मृति में रहना अर्थात मैंने सामायिक कर ली है इस प्रकारं समय काशान न रहना। (1) सामाइयस्स प्रणवठियस्स करणयाए-सामायिक का समय पूरा होने से पहिले ही सामायिक पार लेना। (10) दसवां देशावकाशिक व्रत छठे दिशा परिमाण व्रत में दिशाओं का जो परिमाण किया है उसका तथा जिनमें यावज्जीवन की मर्यादा की है उन सब व्रतों का प्रति दिन के लिए संकोच करना देशावकाशिक व्रत है। प्रतिज्ञा- मैं अपने शरीर में सुख समाधि रहते हुए एक वर्ष में देशावकाशिक अर्थात् चार-पहर का पौषध (.........) या संवर (..:...) अथवा दया (...... कसँगा। देशावकाशिक व्रत में दिशाओं का संकोच कर लेने पर मर्यादा के बाहर की दिशाओं में पाश्रव सेवन करने का एक करके तीन योग से त्याग करता हूँ।। ___ श्रावक के लिए प्रतिदिन चौदह नियम चिन्तन करने.की. जो प्रथा है, वह प्रथा इस देशावकाशिक व्रत का ही रूप है।जो श्रावक इन चौदह नियमों का प्रतिदिन विवेकपूर्वक चिन्तन करता है तथा मर्यादा का पालन करता है, वह सहनही महालाम प्राप्त कर लेता है। वे चौदह नियम ये हैं:- सचित्तव्व विग्गई, पापी तांबुल वत्य कुसुमेह। / वाइण सयण विलेवण, भदिसि पाइप.मत्तेसु //