________________ श्री जैन सिदान्त दोन समा, भौथा भाग 500 - वस्तु का आहार करना।जैसे सीताफल, गधा (गंडेरी),बोर, मूंग आदि की कच्ची फली। उपभोग और परिमोग में आने वाले पदार्थों को उपार्जन करने के लिए किये जाने वाले व्यापार कन्धों में से अधिक हिंसा चाले धन्धों का एवं जिन कार्यों से अधिक कर्मबन्ध हों उन कर्मादानों कात्यागकरना कर्मसम्बन्धीउपमोगपरिभोगपरिमाण व्रत है। श्रावक के लिए कर्मादान जानने योग्य हैं किन्तु आचरण " करने योग्य नहीं हैं। वे कर्मादान पन्द्रह हैं: (1) इंगालकम्मे- कोयले बना कर वेचना यानी कोयले के धन्धे से आजीविका कमाना। (2. वणकम्मे- जंगल का ठेका लेकर वृक्ष काट कर उन्हें बेचना और इस प्रकार आजीविका चलाना। (३.साडीकम्मे- गाड़ी, मोटर, इक्का, बग्घी आदि वाहन बनाने और बेचने का धन्धा कर आजीविका चलाना / (४)माडीकम्मे - भाड़ा कमाने के लिए गाड़ी आदि से दूसरे केसामान को ढोना / ऊँट, बैल, घोड़े आदि पशुओं को किराये पर देकर आजीविका चलाना। (5) फोड़ीकम्मे-खानों को खुदाना, कुदाली, हल वगैरह से भूमि को फोड़ना और उसमें से निकले हुए पत्थर, मिट्टी, धातु आदि पदार्थों को बेच कर आजीविका चलाना। (६)दतवारिन्जे- हाथी दांत, शंख, नख ,चर्म आदि का धन्धा करना अयोत् हाथी दांत आदि निकालने वालों से इन चीजों को खरोदना, पेशगी रकम या ऑर्डर देकर उन्हें उस जीवों से निकलवाना और उन्हें वेच कर आजीविका चलाना।