________________
श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला यश को चाहने वाला व्यक्ति अपने प्राण देकर भी शरण में आए हुए की रक्षा करे।
मैं गरीव चालक हूँ। आपकी शरण में आया हूँ। मेरी रक्षा कीजिए । शरणागत की रक्षा करने वाले अपने कार्य द्वारा स्वयं - भूषित होते हैं। क्योंकिविहलं जो अवलम्बइ, आवइपडियच जो समुद्धरइ । सरणागयं च रक्खइ, तिसु तेसु अलंकिया पुहवी।। अर्थात्-दुःख से घबराए हुए प्राणी को जो सहारा देता है, जो आपत्ति में पड़े हुर का उद्धार करता है तथा जो शरणागत की रक्षा करता है, उन्हीं तीन व्यक्तियों से पृथ्वी सुशोभित है ।
इस प्रकार कहने पर भी लोभी प्राचार्य न माने । वे चालक की गर्दन मरोड़ने के लिए तैयार हो गए । बालक ने फिर प्रार्थना कीभगवन् ! एक कथा सुन लीजिए । फिर जैसी आपकी इच्छा हो कीजिएगा। प्राचार्य के कहने पर बालक सुनाने लगा- .
किसी गांव में एक कुम्हार रहता था। खोदते हुए उस पर किनारे की मिट्टी गिर पड़ी । वह कहने लगा-जिस की करा से मैं देवों को उपहार और याचकों को मिक्षा देता हूँ तथा परिवार का पोपण करता हूँ वही भूमी मुझ पर आक्रमण कर रही है । शरण देने वाला ही मेरे लिए भयजनक हो रहा है।
भगवन ! मैं भी डरा हुआ आपकी शरण में आया हूँ। आप मुझे लूट रहे हैं, इस लिए मुझे भी शरण से भय हो गया है। 'बालक! तुम बड़े चतुर हो यह कहते हुए प्राचार्य ने उसे मार कर आभूषण छीन लिए और उन्हें अपने पात्र में डाल लिया ।व्रत से भ्रष्ट होने पर चतुर व्यक्ति भी अति कर और निर्लज्ज हो जाता है।
आचार्य भागे बढ़े। वन में कुछ दूर चलने पर उन्हें अकाय नाम का दूसरा पालक दिखाई दिया। वह भी पहले के समान