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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाना पूर्वक समय विताने लगे। देवी सुमंगला के उदर से क्रमशः एक पुत्र
और एक पुत्री हुई । पुत्र का नाम भरत और पुत्री का नाम ब्राही रक्खा । इसके अतिरिक्त ४६ युगल पुत्र उत्पन्न हुए। देवी सुनन्दा के उदर से एक चाहुवल नामक पुत्र और सुन्दरी नाम की कन्या उत्पन्न हुई । इस प्रकार भगवान् ऋषभदेव के एक सौ पुत्र और दो पुत्रियाँ उत्पन्न हुई।
समय की विषमता के कारण अब कल्पवृक्ष फल रहित होने लग गये। लोग भूखों मरने लगे और हाहाकार मच गया। इस समय ऋषभदेव की बायु बीस लाख पूर्व की हो चुकी थी। इन्द्रादि देवों ने
आकर ऋषभदेव का राज्याभिषेक महोत्सव किया। राज सिंहासन पर बैठते ही ऋषभदेव ने भूख से पीड़ित लोगों का दुःख दूर करने का निश्चय किया। उन्होंने लोगों को विद्या और कला सिखला कर परावलम्बी से स्वावलम्बी बनाया और लोकनीति का प्रादुर्भाव कर अकर्म भूमि को कर्म भूमि के रूप में परिणत कर दिया। इससे लोगों का दुख दूर होगया, वे सुखपूर्वक रहने लगे। वेसठ लाख पूर्व तक ऋषभदेव राज्य करते रहे । एक दिन उनको विचार आया कि मैंने लौकिक नीति का प्रचार तो किया किन्तु इसके साथ यदि धर्म नीति का प्रचार न किया गया तो लोग संसार में ही फंसे रह कर दुर्गति के अधिकारी बनेंगे, इस लिए अब लोगों को धर्म से परिचित करना चाहिये । इसी समय ऋषभदेव के भोगावली कर्मों का क्षय हुआ जान कर लोकान्तिक देवों ने आकर उनसे धर्म तीर्थ प्रवताने की प्रार्थना की । अपने विचार तथा देवों की प्रार्थना के अनुसार भगवान् ऋषभदेव ने वार्षिक दान देना प्रारम्भ किया। प्रति दिन एक पहर दिन चढ़ने तक एक करोड़ आठ लाख स्वर्णमुद्रा दान देने लगे। इस प्रकार एक वर्ष तक दान देते रहे। इसके पश्चात् अपने ज्येष्ठ पुत्र भरत को विनीता नगरी का और