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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला को छोटे छोटे अपराधों के लिए बहुत अधिक दण्ड देवे, उन्हें ठण्डे पानी में डुबोये, उन पर गरम पानी डाले, आग से डाँव दे या रस्सी
आदि से मार कर चमड़ी उधेड़ दे या लकड़ी प्रादि से पीटे । ऐसा मनुष्य जब तक घर में रहता है, सब लोग बड़े दुखी रहते हैं । उस के बाहर रहने पर प्रसन्न होते हैं । वह बात बात में नाराज होने लगता है। ऐसे कटु वचन बोलता है जिससे सुनने वाले जल उठे। ऐसा व्यक्ति स्वयं तथा दूसरों को प्रशान्त तथा दुखी करता है।
(११) माया प्रत्ययिक-माया अर्थात् छल कपट के कारण लगने वाला पाप । जो मनुष्य मायावी और कपटी होता है उसका कोई काम पूरा नहीं होता। उसकी नीयत हमेशा दूसरे को धोखा देने की रहती है। उसकी प्रवृत्ति कभी स्पष्ट नहीं होती । अन्दर द्वेष रखने पर भी वह बाहर से मित्र होने का ढोंग रचता है। आर्य होने पर भी अनार्य भाषा में बोलता है जिससे कोई दूसरा न समझ सके। पूछी हुई बात का उत्तर न देकर और कुछ कहने लगता है । उसका कपटी मन कभी निर्मल नहीं होता । वह कभी अपना दोष स्वीकार नहीं करता । उसे अपने पाप पर कभी पश्चात्ताप नहीं होता । न वह उसके लिए दुःख प्रकट करता है न प्रायश्चित्त लेता है। ऐसे मनुष्यों का इस लोक में कोई विश्वास नहीं करता । परलोक में वे नरकादि नीच गतियों में बार बार जाते हैं।
(१२) लोम प्रत्ययिक-कामभोग आदि विषयों में प्रासक्ति के कारण होने वाला पाप । बहुत से तापस अथवा साधु भरण्य में, आश्रम में अथवा गांव के बाहर रहते हैं, अनेक गुप्त साधनाएं करते हैं परन्तु वे पूर्ण संयमी नहीं होते । सांसारिक कामनाओं तथा प्राणियों की हिंसा से सर्वथा विरक्त नहीं होते। वे काममोगों में पास और मूञ्छित रहते हैं। अपना प्रभाव जमाने के लिए वे सभी झूठी बातें दूसरों को कहते फिरते हैं । ने पाहते हैं