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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
(६) ज्ञानी-ज्ञान को धारण करने वाला ज्ञानी कहलाता है। (१०) आचार्य-गण का नायक श्राचार्य कहलाता है।
(११) स्थविर--संयम से गिरते हुए साधुओं को जो धर्म में स्थिर करे वह स्थविर कहलाता है।
(१२) उपाध्याय- साधुओं को स्त्रार्थ पढ़ाने वाला मुनि उपाध्याय कहलाता है।
(१३) गणी-कुछ साधुओं के समुदाय का स्वामी गयी है।
इन तेरह पुरुषों का विनय करना चाहिए । इनके भेद से विनय के भी तेरह भेद कहे जाते हैं।'
उपरोक तेरह की अनाशातना, भक्ति, बहुमान और वर्णसंज्वलनता अर्थात् गुणग्राम करना, इन चार भेदों के कारण विनय के पावन मेद भी हो जाते हैं। (दशवकालिक अध्ययन ६ उमेशा १नियुक्ति गाथा ३२५-३२६)(प्रवचन द्वार द्वार ६५ गाथा ५५०५१)(उववाईसूत्र २० ८१४--क्रियास्थान तेरह कर्मबन्ध के कारणों को क्रियास्थान कहते हैं। इनके तेरह मेद हैं
(१) अर्थदण्ड प्रत्ययिक-कुछ अर्थ अर्थात् प्रयोजन से होने वाले पापको अर्थदण्ड प्रत्ययिक क्रिया स्थान कहते हैं । जैसे- कोई
अपने या अपने सम्बन्धियों के लिए त्रस या स्थावर जीवों की हिंसा करे, करावे या अनुमति दे।
(२) अनर्थदण्ड प्रत्ययिक-बिना किसी प्रयोजन के किया जाने वाला पाप । जैसे- कोई अविवेकी मूर्ख जीव विना किसी प्रयोजन प्रस, स्थावर जीवों की हिंसा करे, करावे या अनुमति दे।
(३)हिंसादण्ड प्रत्यायिक-प्राणियों की हिसा रूप पाप । जैसे'अमुक प्राणी ने मुझे, मेरे सम्बन्धियों को या अन्य किसी इष्ट, मित्र को कष्ट दिया है, देता है था देगा' यह सोच कर कोई मनुष्य स्थावर या प्रस जीपों की हिंसा करता है।