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________________ ३७८ 1 श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला (१२) धर्म भावना जाये सुरतरु देय सुख, चिन्तित चिन्तारैन । बिन नाचे बिन चिन्तये, धर्म सकल सुख देन ॥ (८१२) (क) — बारह भावना ( मङ्गलराय कृत ) इस पुस्तक के परिशिष्ट पृष्ठ ५१७ में हैं । 1 बारह भावना भाने वाले महा पुरुषों के नाम और संक्षिप्त परिचय (१) अनित्य भावना - भगवान् ऋषभ देव के ज्येष्ठ पुत्र श्री भरत चक्रवर्ती ने भाई थी । एक दिन स्नानादि कर वस्त्राभूषणों से अलकृत होकर भरत महाराज आदर्श भवन (सीस महल) मे गये । महल में जाकर दर्पण के अन्दर अपना रूप देखने लगे । अचानक एक हाथ की अती में से अनूठी नीचे गिर पड़ी। दूसरी अङ्गलियों की अपेक्षा वह असुन्दर मालूम होने लगी। भरत महाराज को विचार आया कि क्या इन बाहरी व्याभूषणों से ही मेरी शोभा है ? उन्होंने दूसरी अङ्गलियों की अङ्गठियों को भी उतार डाला और यहाँ तक कि मस्तक का मुकुट आदि सब आभूषण उतार दिये । पत्र रहित वृक्ष जिस प्रकार शोभा हीन हो जाता है उसी प्रकार की छावस्था अपने शरीर की देख कर भरत महाराज विचारने लगे-वह शरीर स्वयं असुन्दर है । जिस प्रकार चित्रादि क्रिया से भीत को शोभित किया जाता है उसी प्रकार आभूषणों से ही इस शरीर की शोभा है। यह इसकी कृत्रिम शोभा है । इसका असली स्वरूप तो कुछ और ही है । यह अनित्य एव नश्वर है । मल मूत्रादि अशुचि पदार्थों का भण्डार है । जिस प्रकार अपने ऊपर पड़ी हुई जल की बूँदों को ऊसर भूमि क्षार बना देती है उसी प्रकार विलेपन किये गये कपूर, केशर, कस्तूरी और चन्दन आदि सुगन्धित पदार्थों को भी यह शरीर दूषित कर देता है। इस शरीर की कितनी ही रक्षा क्यों न की जाय परन्तु एक दिन यह अवश्य नष्ट हो जायगा । वे तपस्वी मुनीश्वर धन्य हैं जो इस शरीर की अनित्यता को जान कर मोक्ष फलदायक तप द्वारा स्वयमेव इसे कृश कर डालते हैं। इस प्रकार * चिन्तारै नचिन्तारयण -- चिन्तामणि रत्न |
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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