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श्री सेठिया जैन मन्थमाता भावार्थ-पच्चीस प्रकार की अथवा चारह प्रकार की भावनाओं से जिसका भात्मा शुद्ध हो गया है वह पुरुष जल में नाव के समान कहा गया है। जैसे तीर भूमि को पाकर नाव विश्राम करती है इसी तरह वह पुरुष सब दुःखों से छूट जाता है।
उत्तम भावना करने वाले पुरुष की जो गति होती है उसे बताने के लिए शाखकार कहते हैं-उचम भावना के योग से जिसका अन्तःकरण शुद्ध होगया है वह पुरुष संसार के स्वरूप को छोड़कर जल में नाव की तरह संसार सागर के ऊपर रहता है। जैसे नाव जल में नहीं इवती है इसी तरह बह पुरुष भी संसार सागर में नहीं डूबता है। जैसे उत्तम कर्णधार से युक्त और अनुकूल पवन से प्रेरित नाव सब द्वन्द्वों से मुक्त होकर तीर पर प्राप्त होती है। इसी तरह उत्तम चारित्रवान जीव रूपी नाव उत्तम भागम रूप कर्णधार से युक्त तथा तप रूपी पवन से प्रेरित होकर दु:खात्मक संसार से छूटकर समस्त दुःखों के प्रभाव रूप मोक्ष को प्राप्त करती है।
(श्री शान्त सुधारस ) (भावना शतक) (शानार्णव दूसरा प्रकरण) (प्रवचन सारोद्धार द्वार ६७) (तत्त्वाधिगम भाष्य अध्याय १) भूधरदासकृत बारह भावना के दोहे
(१) अनित्य भावना राजा राणा छत्रपति, हाथिन के असवार । मरना सब को एक दिन, अपनी अपनी बार ॥
(२) अशरण भावना दल बल देवी देवता, मात पिता परिवार । मरती विरियाँ जीव को, कोई न राखन हार ॥
(३) संसार भावना दाम विना निर्धन दुखी, तृष्णा. वश ,धनवान । कहूँ न सुख संसार में, सब जग देख्यो छान ॥