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________________ ३३२ श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला कामभोग-सौधर्मादिकल्पों में देव इष्ट शब्द, इष्ट रूप, इष्ट स्पर्श श्रादि सभी मनोज्ञ कामभोगों को भोगते हैं। (ोवाभिगम प्रतिपत्ति ३ उद्देशा २, सूत्र २०७-२२३) उपपात विरह और उद्वर्तना विरह-सौधर्म और ईशान कल्प में उपपात विरह काल जघन्य एक समय, उत्कृष्ट २४ मुहूर्त है अर्थात् चौवीस मुहूर्त में वहाँ कोई न कोई जीव पाकर अवश्य उत्पन्न होता है। सनत्कुमार में उत्कृष्ट नौ दिन और वीस मुहूर्त । माहेन्द्र में बारह दिन और दस मुहूर्त । ब्रह्मलोक में साढ़े वाईस दिन । लान्तक में पैंतालीस दिन । महाशुक्र में अस्सी दिन । सहसार में सौ दिन । प्राणत और प्राणत में संख्यात मास । इन में प्राणत की अपेक्षा प्राणव में अधिक जानने चाहिएं किन्तु वे एक वर्ष से कम ही रहते हैं। पारण और अच्युत में संख्यात वर्ष । पारण की अपेक्षा अच्युत में अधिक वर्ष जानने चाहिएं किन्तु वे सौ वर्ष से कम ही रहते हैं। जघन्य सभी में एक समय है। देव गति से चव कर जीवों का दूसरी गति में उत्पन्न होना उदतना है । उद्वर्तना का विरह काल भी उपपात जितना ही है। गतागत-सामान्य रूप से देवलोक से चवा हुआ जीव पृथ्वीकाय, अप्काय, वनस्पतिकाय तथा गर्मज पयोप्त और संख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्य या तिर्यञ्चों में ही उत्पन्न होता है। वह तेउकाय, वायुकाय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय,चौरिन्द्रिय सम्मृच्छिम, अपर्याप्त या असंख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यश्च और मनुष्यों में, देवलोक में तथा नरक में उत्पन्न नहीं होता। पृथ्वीकाय, अष्काय और वनस्पतिकाय में भी बादर तथा पर्याप्त रूप से ही उत्पन्न होता है। सूक्ष्म पृथ्वीकाय, सूक्ष्म अप्काय, साधारण वनस्पतिकाय तथा अपर्याप्त पृथ्वी आदि में उत्पन नहीं होता। सौधर्म और ईशान कल्प तक के देव ही पृथ्वीकाय आदि में उत्पन्न होते हैं । सनत्
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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