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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
वर्ष में १२ मास होते हैं । उनके नाम दो प्रकार के हैं- लौकिक और लोकोत्तर | वे इस प्रकार हैं
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(१) श्रावण -- अभिनन्दन । (२) भाद्रपद -- सुप्रतिष्ठित । (३) श्राश्विन - विजय । ( ४ ) कार्तिक - प्रीतिवर्द्धन । (५) मिगसर - श्रयः यस । (६) पौष - श्वेत। (७) माघ - शैशिरेय । (८) फाल्गुनहिमवान् । (६) चैत्र -- वसन्त । ( १ ) वैशाख -- कुसुमसम्भव । (११) ज्येष्ठ - निदाघ । ( १२ ) आषाढ- वनविरोध । (सूर्यं प्रति प्राभृत १०, प्रतिप्राभृत १६ )
८०३ - बारह महीनों में पोरिसी का परिमाण
दिन या रात्रि के चौथे पहर को पोरिसी कहते हैं । शीतकाल मैं दिन छोटे होते हैं और रातें बड़ी । जब रातें लगभग पौने चौदह घन्टे की हो जाती हैं तो दिन सवा दस घन्टे का रह जाता है । उष्णफाल में दिन बड़े होते हैं और रातें छोटा । जब दिन लगभग पौने चौदह घंटे के होते हैं तो रात सवा दस घंटे की रह जाती है। तदनुसार शीतकाल में रात्रि की पोरिसी बड़ी होती है और दिन की छोटी । उष्यकाल में दिन की पोरिसी बड़ी होती है और रात की छोटी ।
पोरिसी का परिमाण घुटने की छाया से जाना जाता है। पौष की पूर्णिमा अथवा सब से छोटे दिन को जब घुटने की छाया चार पैर हो तब पोरिसी समझनी चाहिए। इस के बाद प्रति सप्ताह एक अंगुल छाया घटती जाती है। बारह अंगुल का एक पैर होता है | इस प्रकार आषाढ़ी पूर्णिमा अर्थात् सब से बड़े दिन को छाया दो पैर रह जाती है । इसके बाद प्रतिसप्ताह एक अंगुल छाया बढ़ती जाती है। इस प्रकार पौषी पूर्णिमा के दिन छाया दो पैर रह जाती है। जब सूर्य उत्तरायण होता है अर्थात् मकर संक्रान्ति के दिन से छाया बढ़नी शुरू होती है और सूर्य के दक्षिणायन होने पर अर्थात् कर्क संक्रान्ति से छाया घटनी शुरू होती है। बारह
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